जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा बुनियादी सवाल खड़ा कर दिया। सवाल यह है कि कौन बड़ा है- राष्ट्रहित या विचारधारा? यह सवाल उन्होंने कोई बौद्धिक बहस चलाने के लिए नहीं खड़ा किया है। ट्रंप और मोदी जैसे नेताओं से यह आशा करना व्यर्थ है। मोदी ने इसे इसलिए उठाया है क्योंकि जेएनयू को वामपंथ का गढ़ माना जाता है।
मोदी: राष्ट्रहित बनाम विचारधारा का सवाल क्यों?
- विचार
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- 15 Nov, 2020

सच्चा राष्ट्रवाद तब कैसे होगा, जब देश के लगभग 20-25 करोड़ लोगों को हम सांप्रदायिक आधार पर ‘अराष्ट्रीय’ मान बैठें? इन लोगों में मुसलमान, ईसाई, बहाई, यहूदी, सिख, नगा, मिजो और वामपंथी लोग भी शामिल हैं। यदि हम इस मानसिक संकीर्णता के शिकार होते रहे तो अगले 50 साल में एक नए पाकिस्तान को जन्म दे देंगे।
ये बात दूसरी है कि जेएनयू में सबसे पहले पीएच.डी. करने वालों में मेरा नाम भी है। मेरा हिंदी-आग्रह, धोती-कुर्ता और लंबी चोटी देखकर मुझे भी लोग दक्षिणपंथी ही समझते थे। जेएनयू के प्रथम दीक्षांत समारोह में, जब मुझे उपाधि मिली थी, तब भी वहां विवाद उठ खड़ा हुआ था और आजकल तो वहां वामपंथियों और दक्षिणपंथियों में दंगल होता ही रहता है।