किसान आंदोलन मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। सरकार इससे निपटने की क्या योजना बना रही है? अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। किसान संगठन तीन काले क़ानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं। आंदोलनकारियों को अभी भी सरकार से उम्मीद है। इसलिए आंदोलन मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बहुत मुखर नहीं है। लेकिन अगर सरकार किसानों की माँग नहीं मानती है तो आने वाले वक़्त में किसान आंदोलन की रूपरेखा बदल सकती है। तब सरकार पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन होगा।

तीन अंक को अशुभ मानने वाले संघ ने आज़ादी के बाद दशकों तक तिरंगा नहीं फहराया। लेकिन छद्म राष्ट्रवाद के ज़रिए राष्ट्रीय राजनीति में दाखिल होने के लिए संघ ने पहले मजबूरी में तिरंगे को अपनाया और सत्ता में आते ही भगवा को आगे बढ़ा दिया। मोदी सरकार में खुलकर बीजेपी की रैलियों, उसके सांस्कृतिक आयोजनों और यहाँ तक कि संविधान की मर्यादा की परवाह किए बगैर सरकारी कार्यक्रमों में भी भगवा लहराया जाने लगा।
अलबत्ता ऐसा लग रहा है कि सरकार को किसान आंदोलन की ख़ास परवाह नहीं है। वार्ता ख़त्म करके सरकार ने इसका संकेत भी दे दिया है। लेकिन दूसरे स्तर पर इसका प्रभाव होना सुनिश्चित है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।