स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा किसान आंदोलन दिल्ली की सरहदों पर जारी है। पिछले 60 दिनों में पाँच दर्जन से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं। कड़ाके की ठंड में लाखों किसान बूढ़े-बुजुर्ग, बच्चों और औरतों समेत डटे हुए हैं। सरकार के साथ 10 दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन सरकार किसानों की मुख्य माँग मानने के लिए तैयार नहीं है। किसान भी तीनों काले क़ानून रद्द कराए बग़ैर पीछे हटने के लिए कतई राजी नहीं है।

20 शताब्दी के दूसरे दशक में महात्मा गाँधी के आह्वान पर किसान, मजदूर दलित, स्त्रियाँ, अल्पसंख्यक और नौजवान कांग्रेस के आंदोलन में शामिल हुए। अंग्रेजी पढ़े-लिखे आभिजात्य समुदाय की कांग्रेस का स्वाधीनता आंदोलन अब जन आंदोलन में तब्दील हो गया। गांधी ने जनता के सरोकारों के साथ कांग्रेस को जोड़ा। उन्होंने अपना पहला सत्याग्रह चंपारण, बिहार (1917) में किया।
कॉरपोरेट घरानों को फायदा?
क्या कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुँचाने के लिए मोदी देश के करोड़ों किसानों की बात नहीं मान रहे हैं? क्या मोदी लाखों किसानों की मौजूदगी को किसानों की समग्र आवाज नहीं मानते? तब क्या पूरे भारत के किसानों को दिल्ली आना पड़ेगा? क्या यह केवल पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन है? एक सवाल यह भी है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सभी हिस्सों से किसान आंदोलन में क्यों शामिल नहीं हैं?
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।