सुप्रीम कोर्ट और देश के कुछ उच्च न्यायालयों ने नागरिक अधिकारों और उनके संरक्षण की लड़ाई में जुटे कार्यकर्ताओं, सरकारों के द्वारा क़ानून की विभिन्न धाराओं के तहत उनकी गिरफ्तारियों आदि को लेकर पिछले कुछ महीनों के दौरान महत्वपूर्ण फ़ैसले सुनाये हैं। इन फ़ैसलों को लेकर काफ़ी प्रतिक्रियाएँ भी हुईं हैं। हाल ही के एक निर्णय में दिल्ली दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए तीन युवा एक्टिविस्ट्स की जमानत अर्जियाँ मंजूर करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस आशय की टिपण्णी भी की कि : ‘असहमति को दबाने की जल्दबाज़ी में राज्य के दिमाग़ में विरोध प्रकट करने के प्राप्त अधिकार और आतंकी गतिविधियों के बीच की रेखा धुंधली होने लगती है। अगर ऐसी मानसिकता जोर पकड़ती है तो यह लोकतंत्र के लिए सबसे दुखद होगा।’