पाँच जून के दिन को याद करना और याद रखना ज़रूरी है। अगले पाँच जून तक तो देश में कई परिवर्तन हो जाएँगे, बहुत कुछ बदल जाएगा, बदल दिया जाएगा! देश नहीं जानता है कि वे परिवर्तन क्या और कैसे होंगे! उनचास साल पहले पाँच जून 1974 को बिहार की राजधानी पटना के ‘गांधी मैदान’ से जिस ‘संपूर्ण क्रांति’ की शुरुआत हुई थी वह आज भी पूरी नहीं हुई है। बहत्तर-वर्षीय जयप्रकाश नारायण उस क्रांति के कृष्ण थे, सारथी और नायक थे। पाँच दशकों के बाद देश एक बार फिर एक नई क्रांति के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है पर उसके पास कोई नायक और लोकनायक नहीं है।
2023 का जून 1974 का 5 जून बन पाएगा कि नहीं?
- विचार
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- 5 Jun, 2023

विपक्षी एकता को लेकर पटना में 12 जून को विपक्षी दलों की होने वाली बैठक को आगे टाल दिया गया है। लेकिन सवाल है कि क्या यह बैठक इस महीने हो पाएगी? जानें यह महीना बिहार के लिए ख़ास क्यों।
आँखों के सामने रह-रहकर पाँच जून 1974 का पटना, उसका गांधी मैदान और वहाँ से राजभवन तक जाने वाली सड़क का दृश्य उभर रहा है। मैं उस मंच पर उपस्थित था जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) गांधी मैदान पर लाखों की संख्या में उपस्थित लोगों का ‘संपूर्ण क्रांति’ के लिए आह्वान कर रहे थे। जेपी ने जब घोषणा की कि ‘हमें संपूर्ण क्रांति चाहिए, इससे कम नहीं’ तो पूरा गांधी मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था, उसकी आवाज़ दूर दिल्ली में बैठी इंदिरा गांधी की सत्ता को भी सुनाई पड़ रही थी।