हमारे देश की संसद बनी तो थी देश के मुद्दों पर बहस-मुबाहिसे के लिए लेकिन अब यहां केवल हंगामा होता है। वजह साफ़ है कि जो भी सत्तासीन होता है, ज्वलंत मुद्दों पर बहस से कतराता है। आज के प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी भी बहस से कतरा रही है। मुझे सत्तारूढ़ दल और उसके नेताओं की इस कातरता पर कोई हैरानी नहीं है लेकिन विपक्ष है कि मानता ही नहीं। उसे मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री का ही बयान सुनना है।

विपक्षी दल मणिपुर हिंसा पर संसद में चर्चा कराने और पीएम मोदी के बयान देने की मांग के लिए विरोध कर रहे हैं, लेकिन क्या सरकार ऐसा करेगी? जानिए, आख़िर दिक्कत कहाँ है।
मणिपुर का मुद्दा सत्तारूढ़ दल के लिए काबिले बहस मुद्दा न हो किन्तु ये मुद्दा अब देश की सीमाएँ लांघकर दुनिया जहाँ तक पहुँच गया है। विपक्ष को इसी पर संतोष कर लेना चाहिए कि जिस मुद्दे पर देश की संसद में बहस होनी थी उसी मुद्दे पर दूसरे देशों की संसदें बहस कर रही हैं। हमारी सरकार जब विदेश की संसद को कोई उत्तर नहीं दे रही तो देश की संसद में अपना श्रीमुख कैसे खोल सकती हैं? मणिपुर पर बहस किस प्रावधान के तहत हो, अभी इसी पर बहस और हंगामा हो रहा है। विपक्ष सारे काम रोककर बहस कराना चाहता है जबकि सरकार चाहती है कि पहले निर्धारित कार्यसूची पर काम हो फिर बहस। यानी सरकार बहस से नहीं भाग रही?