अपने पाला बदल कार्यक्रम से नीतीश कुमार चाहे जो अच्छे-बुरे रिकॉर्ड बना रहे हों, भारतीय राजनीति में उनके माध्यम से बदलाव का एक दिलचस्प दौर शुरू हुआ है जिस पर गौर करने की जरूरत है। यह उनके नौ बार मुख्यमंत्री बनने या श्रीबाबू का रिकॉर्ड तोड़ने जैसे हिसाब से अलग और बड़ा है। अपने मित्र योगेंद्र यादव जैसे राजनीति और चुनाव के विशेषज्ञ भी उनके पाला बदल की चर्चा में इन पक्षों की चर्चा नहीं करते हैं। नीतीश कुमार या भाजपा को एक अनैतिक गठबंधन के लिए कोसना, इंडिया गठबंधन के भविष्य की चर्चा करना, सरकार पलट के पीछे चले खेल और दांव-पेंच की चर्चा करना और कारणों का अनुमान लगाना जरूरी है लेकिन यह सब अनजान नहीं रह गया है।
नीतीश कांड के कारण चुनाव से पहले धुंधला पड़ गया अयोध्या मुद्दा!
- विचार
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- 31 Jan, 2024

नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद क्या राम मंदिर का मुद्दा अब चर्चा से गायब हो गया है? आख़िर नीतीश कुमार से बीजेपी को क्या फायदा होगा और क्या नीतीश को भी कुछ फायदा मिल पाएगा?
भाजपा और उसमें भी मोदी-शाह की जोड़ी की सत्ता की भूख और नीतीश कुमार जैसे लोगों की भूख कोई अनजान चीज नहीं है। यह भी ज्ञात है कि बाकी सबकी कीमत लग जाती है पर नीतीश की भूख सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी से पूरी होती है। और बिहार के महाबली लालू हों या मोदी-शाह यह कीमत देने को मजबूर होते हैं जबकि नीतीश का राजनैतिक अर्थात वोट का आधार सिमटता ही गया है। लालू यादव तो सीधे-सीधे की लड़ाई भी लड़ते रहे हैं पर भाजपा ने पिछले विधान सभा चुनाव में साथ रहकर भी शिखंडी जैसों की मदद से नीतीश को हराने की भरपूर कोशिश की और नीतीश इसको लेकर काफी फुनफुनाते भी रहे हैं।