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यदि यातायात नियम इतने सख़्त कर दिए जाएँ कि गाड़ी की क़ीमत से ज़्यादा जुर्माना लगाया जाने लगे तो क्या कहेंगे?
देश के अधिकांश राज्यों में संशोधित यातायात नियम 2019 लागू कर दिया गया है। इस नए नियम के अंतर्गत जुर्माना राशि बेतहाशा बढ़ाई गई है तथा कई धाराओं में वाहन चालक अथवा स्वामी को जेल की सज़ा भुगतने तथा निर्धारित अवधि के लिए लाइसेंस निरस्त करने का भी प्रावधान किया गया है। कुछ नए नियम भी गढ़े गए हैं और इनपर भी भारी जुर्माने की व्यवस्था की गई है। राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल राज्यों ने इस नए संशोधित यातायात अधिनियम को अपने राज्यों में लागू नहीं किया है। ये दोनों ही राज्य जुर्माने की राशि ज़्यादा बढ़ाए जाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले का शुरू से ही विरोध कर रहे थे। राजस्थान सरकार का तो यह मत भी है कि इतने अधिक जुर्माने से भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा। भारत जैसे मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग बाहुल्य इस देश में यदि इन संशोधित यातायात नियमों के सन्दर्भ में बात की जाए तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि इस नए नियम के बहाने सरकार द्वारा जनता की जेब से पैसे निकालने का एक ज़रिया मात्र तलाशने की कोशिश की गई है।
चर्चा इस बात की भी हो रही है कि नोटबंदी से लेकर जल्दबाज़ी में लागू किए गए जीएसटी के प्रावधानों आदि के चलते देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुक़सान की भरपाई के लिए जो क़दम सरकार द्वारा उठाए जा रहे हैं, नया यातायात नियम भी उसी आर्थिक वसूली अभियान का एक हिस्सा है। बहरहाल इस संशोधित यातायात अधिनियम के बहाने जनता से आर्थिक वसूली का जो बहाना तलाश किया गया है क्या वह पूरी तरह न्याय संगत है? क्या केवल जनता पर आर्थिक बोझ लाद देने से यातायात व्यवस्था में सुधार हो सकेगा?
सरकार ने आम लोगों के लिए यातायात नियम तो इतने सख़्त बना दिए हैं लेकिन क्या सरकार व प्रशासन की ग़लतियों या लापरवाहियों की वजह से जनता को होने वाले नुक़सान, दुर्घटनाओं, यहाँ तक कि लोगों की मौत का भी आख़िर कोई ज़िम्मेदार है या नहीं?
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2019 को मंजूरी देने के बाद नए यातायात नियम के अनुसार अब पुलिस को ट्रैफ़िक नियम तोड़ने पर 8 ऐसे अधिकार मिले हैं जिनमें सीधे तौर पर लाइसेंस रद्द किया जा सकेगा। ट्रैफ़िक नियम तोड़ने पर सख़्त सज़ा होगी। यदि किसी अवयस्क से वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना होती है तो उसके माता-पिता को 3 साल तक की जेल की सज़ा होगी और दुर्घटनाग्रस्त वाहन का रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर दिया जाएगा। अवयस्क पर जुवेनाइल एक्ट के तहत मुक़दमा भी चलेगा। धारा 193 के तहत लाइसेंस नियमों को तोड़ने पर 25,000 से 1 लाख रुपये, धारा 194 के तहत ओवरलोडिंग (निर्धारित सीमा से अधिक माल का भार होने पर) 2000 रुपये और प्रति टन 1000 रुपये अतिरिक्त 20,000 रुपये और प्रति टन 2000 रुपये अतिरिक्त के जुर्माने का प्रावधान है।
देश में क़रीब 65-70 प्रतिशत लोग देश की ख़ुशहाली का भ्रम बनाए रखने में अपना योगदान देने के लिए बैंकों तथा अन्य निजी फ़ाइनेंस कम्पनियों से क़र्ज़ लेकर वाहन ख़रीदते हैं। साधारण लोग नोटबंदी, मंदी या बेरोज़गारी का शिकार होने की वजह से अपने वाहन के लोन की किस्तें भी ठीक से अदा नहीं कर पा रहे हैं। हक़ीक़त तो यह है कि अनेक वाहन चालक या इसके मालिक तेल के आए दिन बढ़ते हुए दामों का बोझ उठाने तक में असमर्थ रहते हों, ऐसे लोगों को यदि पाँच, दस और बीस हज़ार रुपये जुर्माने का भुगतान उसकी किसी ग़लती की वजह से करना पड़ गया तो या तो वह अपना वाहन ही हमेशा के लिए ट्रैफ़िक पुलिस के हवाले करके घर चला जाएगा या उसे जुर्माना भरने लिए फिर से क़र्ज़ लेना पड़ेगा।
यदि इस संशोधित मोटर व्हीकल अधिनियम 2019 को लागू करने के पीछे सरकार का मक़सद चालकों को अनुशासित बनाना या दुर्घटनाएँ रोकना है तो फिर आख़िर सरकार व प्रशासन की लापरवाही व ग़लत नीतियों के चलते होने वाली दुर्घटनाओं का ज़िम्मेदार कौन है? क्या नए यातायात अधिनियम लागू करने वाली सरकार यह बताएगी कि सड़कों के गड्ढे या मेनहोल के खुले ढक्कन की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं की ज़िम्मेदारी किसकी है और उस ज़िम्मेदार पर क्या जुर्माना लगेगा? सड़कों पर घूमने वाले आवारा पशु जैसे सांड, गाय, सूअर, घोड़े, कुत्ते तथा नीलगाय आदि से वाहनों के अचानक टकराने से होने वाले हादसों का ज़िम्मेदार कौन और इसकी भरपाई कौन करेगा? इसी प्रकार कभी सिग्नल की ख़राबी के चलते दुर्घटना होती है तो कभी सिग्नल की बत्ती गुल होने की वजह से।
अनेक दुर्घटनाएँ व जाम जैसी स्थिति सड़कों पर हर तरफ़ होने वाले अतिक्रमण की वजह से भी होती हैं। लेकिन सरकार के पास अतिक्रमण हटाने व पार्किंग का उचित प्रबंध करने जैसी ज़रूरी व्यवस्था हर जगह उपलब्ध नहीं है। जिसकी वजह से केवल दुर्घटना व जाम की ही स्थिति नहीं बनती बल्कि बेतहाशा प्रदूषण भी फैलता है।
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