यदि यातायात नियम इतने सख़्त कर दिए जाएँ कि गाड़ी की क़ीमत से ज़्यादा जुर्माना लगाया जाने लगे तो क्या कहेंगे?
नए यातायात नियम: भारी जुर्माना न्याय संगत या जन-विरोधी?
- विचार
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- 4 Sep, 2019

यदि यातायात नियम इतने सख़्त कर दिए जाएँ कि गाड़ी की क़ीमत से ज़्यादा जुर्माना लगाया जाने लगे तो क्या कहेंगे? ऐसे लोग क्या गाड़ी को छोड़कर नहीं चले जाएँगे?
देश के अधिकांश राज्यों में संशोधित यातायात नियम 2019 लागू कर दिया गया है। इस नए नियम के अंतर्गत जुर्माना राशि बेतहाशा बढ़ाई गई है तथा कई धाराओं में वाहन चालक अथवा स्वामी को जेल की सज़ा भुगतने तथा निर्धारित अवधि के लिए लाइसेंस निरस्त करने का भी प्रावधान किया गया है। कुछ नए नियम भी गढ़े गए हैं और इनपर भी भारी जुर्माने की व्यवस्था की गई है। राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल राज्यों ने इस नए संशोधित यातायात अधिनियम को अपने राज्यों में लागू नहीं किया है। ये दोनों ही राज्य जुर्माने की राशि ज़्यादा बढ़ाए जाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले का शुरू से ही विरोध कर रहे थे। राजस्थान सरकार का तो यह मत भी है कि इतने अधिक जुर्माने से भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा। भारत जैसे मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग बाहुल्य इस देश में यदि इन संशोधित यातायात नियमों के सन्दर्भ में बात की जाए तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि इस नए नियम के बहाने सरकार द्वारा जनता की जेब से पैसे निकालने का एक ज़रिया मात्र तलाशने की कोशिश की गई है।
चर्चा इस बात की भी हो रही है कि नोटबंदी से लेकर जल्दबाज़ी में लागू किए गए जीएसटी के प्रावधानों आदि के चलते देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुक़सान की भरपाई के लिए जो क़दम सरकार द्वारा उठाए जा रहे हैं, नया यातायात नियम भी उसी आर्थिक वसूली अभियान का एक हिस्सा है। बहरहाल इस संशोधित यातायात अधिनियम के बहाने जनता से आर्थिक वसूली का जो बहाना तलाश किया गया है क्या वह पूरी तरह न्याय संगत है? क्या केवल जनता पर आर्थिक बोझ लाद देने से यातायात व्यवस्था में सुधार हो सकेगा?