जो लोग औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह की यह कह कर तारीफ़ करते नहीं थकते कि वह संस्कृत का विद्वान था, उसी विचारधारा के लोग बीएचयू में एक मुसलमान के संस्कृत प्रोफ़ेसर नियुक्त किए जाने पर हंगामा खड़ा कर देते हैं। क्या यह संयोग है या एक निश्चित सोच का पैटर्न है, जो अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रूप से दिखता है? क्या यह भाषा पर सांप्रदायिकता का रंग चढ़ाने की कोशिश नहीं है?
फ़िरोज़ ख़ान: भाषा पर चढ़ाया जा रहा है सांप्रदायिकता का रंग, मक़सद क्या है?
- विचार
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- 21 Nov, 2019

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में एक मुसलमान के संस्कृत प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के बाद कुछ छात्रो ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया है। यह क्या दिखाता है?