देश में अनपढ़ होना गुनाह है! आदिवासी और दलित होना भी गुनाह है! मुसलमान भी ऐसे ही गुनहगारों की श्रेणी में आते हैं! नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से जो आईना बन रहा है, वह यही तसवीर दिखा रहा है। लोग लाचार और बेबस हैं। बगैर सज़ा के जेलों में बंद हैं। अंडरट्रायल हैं। और, जेलें भी क्षमता से अधिक कैदियों को समेट कर अमानवीय स्थिति का अतिरिक्त बोझ ऐसे बेबस लोगों पर डाल रही हैं। महिलाएं भी अबला हैं और बच्चे भी असहाय, लिहाजा अंडरट्रायल माताएं बच्चों समेत जेल की जिन्दगी जीने को विवश हैं।
एनसीआरबी के आंकड़े: जेलों में सबसे ज़्यादा क्यों क़ैद हैं आदिवासी, दलित, मुसलमान!
- विचार
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- 5 Sep, 2020

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि जेलों में वंचित तबक़ों की आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी न सिर्फ सुनिश्चित कर दी गयी है बल्कि उनके खाते में और भी अधिक हिस्सेदारी बख्श दी गयी है।
वंचित तबक़ों के लिए आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी बाबा साहेब आंबेडकर का सिद्धांत रहा है। मगर, वे सत्ता में हिस्सेदारी की बात करते थे। वंचित तबक़ों के लिए आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी बाबा साहेब आंबेडकर का सिद्धांत रहा है। मगर, वे सत्ता में हिस्सेदारी की बात करते थे। विकास के मामले में तो इन तबक़ों को इनका जायज़ हक़ अब तक नहीं मिला, लेकिन एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि जेलों में उनकी हिस्सेदारी उनकी आबादी के अनुपात से कहीं ज़्यादा सुनिश्चित कर दी गयी है।