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कार्रवाई के बजाए फ़ेसबुक से ‘न्याय’ क्यों माँग रही है सरकार?

ग़लती फ़ेसबुक ने की। सवाल फ़ेसबुक पर उठे। क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी- दोनों ने इस वैश्विक प्लेटफ़ॉर्म के राजनीतिक दुरुपयोग को लेकर फ़ेसबुक को ही चिट्ठियाँ भी लिखीं। अब भारत सरकार भी फ़ेसबुक के प्रमुख को ही चिट्ठी लिख रही है! चिट्ठी भी ऐसी कि पीएम नरेंद्र मोदी को फ़ेसबुक के कर्मचारी गाली दे रहे हैं और यह रिकॉर्ड में है!

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद देश के क़ानून मंत्री हैं, न्याय मंत्री हैं, संचार मंत्री हैं। वह इलेक्ट्रॉनिक और आईटी मंत्री भी हैं। फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को नियंत्रित करने के लिए तमाम मंत्रालय रविशंकर प्रसाद के पास हैं। मगर, फ़ेसबुक पर नियंत्रण करने के बजाए वह चिट्ठी लिख रहे हैं फ़ेसबुक के सह-संस्थापक और सीईओ मार्क ज़करबर्ग को। वह गिड़गिड़ा रहे हैं कि फ़ेसबुक का स्टाफ़ भारत के प्रधानमंत्री को गालियाँ दे रहा है, रोको। ऐसा लगता है कि भारत के उन तमाम मंत्रालयों की रिपोर्टिंग फ़ेसबुक के चेयरमैन को है जिसके मंत्री हैं रविशंकर प्रसाद!

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2 सितंबर को आईटी की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी के सामने फ़ेसबुक को पेश होना है। और, एक दिन पहले केंद्रीय न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद फ़ेसबुक से ही न्याय माँग रहे हैं! यह वाक़ई आश्चर्यजनक है। यह तो पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी की साख का भी सवाल है! केंद्रीय मंत्री के रुख के बाद कमेटी की ओर से तलब किए गये फ़ेसबुक का हौसला बुलंद होगा।

क्या कोई एक उदाहरण भी बता सकता है कि अमेरिका के किसी मंत्री ने भारत के किसी सीईओ को चिट्ठी लिखकर कभी इस क़िस्म का आग्रह किया हो? अमेरिका या भारतीय सीईओ की बात छोड़िए, दुनिया के किसी भी देश की सरकार ने दूसरे देश के सीईओ को कभी ऐसा बेबस पत्र लिखा हो, इसका उदाहरण नहीं मिलता। 
ऐसी स्थिति पैदा क्यों हुई कि भारत सरकार को फ़ेसबुक के प्रमुख मार्क ज़करबर्ग से विनती करनी पड़ रही है? देश के स्वाभिमान को एक विदेशी कॉरपोरेट के सामने घुटनों पर ला देने का यह अक्षम्य अपराध है।

केंद्रीय मंत्री ने दोहरा दीं बीजेपी आईटी सेल की बातें

रविशंकर प्रसाद जो बातें चिट्ठी लिख कर कह रहे हैं उनमें से एक बात भी ऐसी नहीं है जो बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने जून महीने में फ़ेसबुक को लिखी चिट्ठी में नहीं कही है। रविशंकर प्रसाद और अमित मालवीय में क्या फर्क है- इसे बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। राजनीतिक दल या उसके नेताओं का कॉरपोरेट घरानों को चिट्ठी लिखना और उनसे आग्रह करना अनहोनी बात नहीं है। मगर, रविशंकर प्रसाद देश के मंत्री हैं, भारत की सरकार का चेहरा हैं। देश की 138 करोड़ जनता उनसे अपेक्षा रखती है कि वह भारत सरकार के मंत्री के तौर पर फ़ेसबुक की कारगुजारियों पर एक्शन लें, उसे बेकाबू होने से रोकें।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में यह ख़बर छप चुकी है कि बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने 18 और 19 जून को फ़ेसबुक की इंडिया पब्लिक पॉलिसी हेड आँखी दास को ईमेल किया था। इसमें फ़ेसबुक के एक पब्लिक पॉलिसी मैनेजर पर बीजेपी विरोधी भावना रखने और सोशल मीडिया में कांग्रेस के लिए पोस्ट करने का आरोप था।

अगर यह मुद्दा व्यापक राजनीतिक महत्व का होता तो निश्चित रूप से अमित मालवीय और उनकी पार्टी बीजेपी इसे चिट्ठी ई-मेल तक सीमित नहीं रखती। उन्हें पता था कि भारत में फ़ेसबुक की पब्लिक पॉलिसी हेड आँखी दास बीजेपी की पॉलिसी को आगे बढ़ाना ही अपनी क़ारोबारी कामयाबी मान रही थीं। ऐसे में फ़ेसबुक के भीतर इक्के-दुक्के ‘राजनीतिक विरोधियों’ को उनके ही माध्यम से नियंत्रित करना उन्हें बेहतर लगा।

आँखी दास के ‘बीजेपी समर्थक’ होने के खुलासे!

अब जबकि वाल स्ट्रीट जर्नल ने लगातार यह खुलासा किया है कि फ़ेसबुक के अंदर जब हेट स्पीच हटाने की माँग की गयी, तो आँखी दास ने न सिर्फ़ इस माँग पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि कथित तौर पर कहा कि बीजेपी पर अंकुश लगाने से फ़ेसबुक का नुक़सान होगा। इस मामले में लगातार खुलासे हो रहे हैं जो बताते हैं कि फ़ेसबुक ने बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाने का काम किया गया।

कांग्रेस इस मामले में अब तक दो चिट्ठियाँ फ़ेसबुक को लिख चुकी है। एक चिट्ठी बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए फ़ेसबुक की भूमिका की जाँच से संबंधित है तो दूसरी चिट्ठी इस जाँच की माँग पर उठाए गये क़दमों का खुलासा करने को लेकर है। राहुल गाँधी ने ट्वीट कर यह दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने यह उजागर कर दिया है कि वाट्सऐप-फ़ेसबुक ने भारतीय लोकतंत्र और सौहार्द्र पर हमला किया है।

राहुल गाँधी का यह हमला वाल स्ट्रीट जर्नल की 30 अगस्त को छपी ताज़ा रिपोर्ट के बाद है जिसमें भारत में फ़ेसबुक की पब्लिक पॉलिसी हेड आँखी दास के अतीत में बीजेपी के लिए किए गये पोस्ट और अंदरूनी मैसेज का उल्लेख है। इससे पता चलता है कि वह बीजेपी के पक्ष में और कांग्रेस के ख़िलाफ़ फ़ेसबुक की पॉलिसी को आगे बढ़ा रही थीं।

मामला फ़ेसबुक-बीजेपी में साँठगाँठ या कुछ और?

यही वह पृष्ठभूमि है जिसने रविशंकर प्रसाद को मीडिया में आने और बीजेपी का बचाव करने को विवश कर दिया। यही काम बीजेपी के प्रवक्ता करते तो यह लड़ाई राजनीतिक कही जाती। फ़ेसबुक के दुरुपयोग को लेकर यह मसला कांग्रेस और बीजेपी के दरम्यान माना जाता। दोनों पार्टियाँ फ़ेसबुक से शिकायत करतीं और लड़ती नज़र आतीं। 

क़ानून, न्याय, संचार व आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद की इस मामले में एंट्री ने मसले को फ़ेसबुक बनाम भारत सरकार बना दिया है। जबकि, उजागर हो रही सच्चाईयाँ कह रही हैं कि मसला सत्ताधारी बीजेपी और फ़ेसबुक की कथित मिलीभगत का है।

फ़ेसबुक पर गंभीर आरोप हैं न कि ‘आरोप-प्रत्यारोप’?

फ़ेसबुक को विपक्ष ने चिट्ठी लिखी, सत्ता पक्ष ने चिट्ठी लिखी। दोनों का आरोप फ़ेसबुक का एक-दूसरे के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होना है। इसके दो मायने हो सकते हैं-

एक मतलब यह निकलता है कि फ़ेसबुक बहुत निष्पक्ष है और इसलिए दोनों प्रमुख राजनीतिक दल अपने-अपने नज़रिए से अपने राजनीतिक हितों के लिए फ़ेसबुक पर इल्जाम लगा रहे हैं।

दूसरा मतलब यह निकलता है कि फ़ेसबुक निश्चित रूप से अपने व्यावसायिक हितों के लिए भारत के राजनीतिक मामलों में दखल दे रहा है जिसे बीजेपी भी मानती है और कांग्रेस भी।

विचार से ख़ास

फ़ेसबुक पर जो खुलासे हुए हैं या हो रहे हैं, वह भारतीय मीडिया ने नहीं, अमेरिकी मीडिया ने किए हैं। अब भारतीय मीडिया इस मसले को किस रूप में प्रस्तुत करे, इसकी रणनीति तैयार है। फ़ेसबुक से जुड़े पूरे मामले को राजनीतिक दलों का ‘आरोप-प्रत्यारोप’ कहकर दूध में पानी मिलाने का काम कैसे हो, इसके लिए अमित मालवीय के जून वाली चिट्ठी के तथ्य लेकर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद मीडिया में पहुँच गये हैं।

फ़ेसबुक के दुरुपयोग पर कांग्रेस से राजनीतिक लड़ाई में आगे रहने के लिए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भारत सरकार की ही साख को दाँव पर रख दिया है। फ़ेसबुक पर एक्शन की घोषणा होनी चाहिए थी, लेकिन मंत्री महोदय फ़ेसबुक से एक्शन के लिए चिट्ठी लिख रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि देश क्या मार्क ज़करबर्ग चला रहे हैं? भारत के प्रधानमंत्री को फ़ेसबुक के कर्मचारी गाली दे रहे हैं और वह रिकॉर्ड में है तो न्याय क्या ज़करबर्ग करेंगे या कि भारत सरकार और यहाँ की न्यायपालिका करेगी? ‘सबसे मज़बूत’ सरकार सबसे कमज़ोर बनी सामने दिख रही है। भारत का स्वाभिमान एक विदेशी पूंजीपति के सामने नतमस्तक दिख रहा है।
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प्रेम कुमार
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