मध्य प्रदेश में वही हुआ, जो कल मैंने लिखा था। कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे में अगले मुख्यमंत्री को शुभकामना भी दे दी। जाहिर है कि शीघ्र ही मप्र में बीजेपी का शासन शुरू हो जाएगा। बीजेपी की सरकार तो बन जाएगी लेकिन वह उस तरह से शायद नहीं चल पाएगी, जैसी वह पिछले 15 साल तक चली है। इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि बीजेपी का बहुमत विधानसभा में काफी छोटा है।
यदि बीजेपी के दर्जन भर विधायक भी बग़ावत का झंडा उठा लें तो सरकार हिलने लगेगी। बीजेपी के मुख्यमंत्री को इस बार फूंक-फूंककर क़दम रखना होगा। दूसरा कारण यह है कि कांग्रेस के जिन 22-23 विधायकों के इस्तीफे हुए हैं, वे उप-चुनाव लड़ना चाहेंगे। क्या बीजेपी अपने पुराने उम्मीदवारों की एकदम उपेक्षा करके इन्हें चुनाव लड़वाएगी? यदि वह ऐसा करेगी तो भी यह पता नहीं कि उनमें से कितने जीतेंगे और कितने हारेंगे? दूसरे शब्दों में कहें तो उप-चुनाव के बाद अस्थिरता का एक नया दौर शुरू हो सकता है।
तीसरा कारण यह है कि बीजेपी में इस दौरान तीन-चार गुट उभर चुके हैं। पहले तो वे अपना-अपना मुख्यमंत्री लाने की कोशिश में लग गए हैं और उनमें से जो सफल नहीं होंगे, वे क्या दूसरे गुट के मुख्यमंत्री को आराम से काम करने देंगे? चौथा कारण यह होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी में हैं। इससे बीजेपी मप्र में मजबूत ज़रूर होगी लेकिन अब एक नया गुट भी उठ खड़ा होगा।
सरकार ढंग से चले, इसके लिए ज़रूरी है कि मुख्यमंत्री और सिंधिया के बीच समीकरण ठीक-ठाक रहें। यह भी पता नहीं कि कमलनाथ अब भोपाल में ही टिके रहेंगे या फिर दिल्ली जाना चाहेंगे? दिग्विजय सिंह राज्यसभा में पहुंचेंगे या नहीं, यह भी अब तय नहीं है लेकिन मप्र में कांग्रेस की राजनीति अगले चार साल कैसे चलेगी, यह तय करने में दिग्गी राजा की भूमिका की उपेक्षा नहीं की जा सकेगी।
शिवराज हैं प्रमुख दावेदार
मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में बीजेपी की ओर से शिवराज सिंह चौहान का दावा सबसे मजबूत मालूम पड़ता है। वह अपने सुदीर्घ अनुभव के आधार पर मध्य प्रदेश को भारत का सबसे खुशहाल और समृद्ध प्रदेश बना सकते हैं। वह चाहें तो मध्य प्रदेश को अगले चार साल में ऐसा प्रदेश बना सकते हैं कि भारत के अन्य सारे प्रदेशों को उससे सात्विक ईर्ष्या होने लगे। सक्षम विपक्ष के नाते कांग्रेस उत्तम अंकुश का काम कर सकती है।
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