भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को सेवानिवृत्त हुए अभी चार महीने भी नहीं बीते कि उन्हें राज्यसभा में नामजद कर दिया गया। राष्ट्रपति द्वारा नामजद किए जानेवाले 12 लोगों में से वे एक हैं। ऐसा नहीं है कि गोगोई के पहले कोई न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायाधीश सांसद नहीं बने हैं, वे बने हैं लेकिन गोगोई ऐसे पहले सर्वोच्च न्यायाधीश हैं, जो राष्ट्रपति की नामजदगी से राज्यसभा के सदस्य बननेवाले हैं और वह भी सेवानिवृत्त होने के चार माह के अंदर ही!
पूर्व सीजेआई गोगोई ने आख़िर क्यों स्वीकार की राज्यसभा की सदस्यता?
- विचार
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- 19 Mar, 2020

न्यायाधीशों का आचरण सदा संदेह से भी परे होना चाहिए। वे नेता या उद्योगपति नहीं हैं। जो सरकारें ऐसी नियुक्तियाँ करती हैं, उन्हें अपनी इज़्ज़त की कोई परवाह नहीं होती। कुर्सी में बैठते ही उनकी खाल दरियाई घोड़ों की तरह मोटी और सुन्न हो जाती है। राज्यसभा के इन 12 नामजदों में ऐसे दर्जनों लोगों को भी उच्च सदन में राष्ट्रपति लोग अक्सर भेजते रहे हैं, जो किसी नगरपालिका में बैठने लायक नहीं होते।
इस नियुक्ति से न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधानपालिका- सरकार के इन तीनों अंगों की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। मेरा सबसे पहले प्रश्न ख़ुद श्री गोगोई से है। वह न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर रहे हैं। वह देश में एकमात्र पद है। उसके मुक़ाबले कोई दूसरा पद नहीं है। लेकिन राज्यसभा के लगभग ढाई सौ सदस्य हैं।