मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी (एमओसी) का विदेशी चंदा बंद करने से संबंधित सरकारी उपायों का फॉलोअप मीडिया में वैसे नहीं हुआ जैसे होना चाहिए था। भारत सरकार जनता की सेवा जनता के पैसे से करती है और उसके लिये वेतन लेती है जबकि एमओसी जैसे एनजीओ अगर विदेशी चंदे से भारत की जनता की सेवा करें तो वह लगभग निशुल्क है। निश्चित रूप से इसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए पर बीजेपी सरकार विदेशी चंदा प्राप्त करने में रोड़ा अटकाती रही है। और तो और विदेशों से धन प्राप्त करने के नियम भी मुश्किल कर दिए गए हैं।
विदेशी चंदा: ‘देशभक्ति’ वही जो बीजेपी करवाए?
- विचार
- |
- |
- 31 Dec, 2021

मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी का विदेशी चंद क्यों बंद किया गया और आख़िर क्यों विदेशी चंदे के लिए आवश्यक विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम के तहत नवीकरण नहीं किया गया?
मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी (एमओसी) का मामला सामने आया तो सरकार ने बचाव में कह दिया कि कुछ प्रतिकूल इनपुट्स देखे गए थे। मुद्दा यह है कि प्रतिकूल इनपुट्स पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई और इस पर फ़ैसला करने की बजाय विदेशी चंदे के लिए आवश्यक विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफ़सीआरए) के तहत नवीकरण नहीं हुआ है और मंजूरी नहीं दी गई है। चूंकि 'प्रतिकूल इनपुट्स' के बारे में बताया नहीं गया इसलिए एक अटकल यह भी हो सकती थी कि उसपर धर्मांतरण या ऐसा ही कुछ दूसरा आरोप होगा।