इस रहस्य से कभी पर्दा नहीं उठ पाएगा कि देश और दुनिया भर में सनसनी फैलाते हुए पाँच दिन के लिए संसद का विशेष सत्र क्यों बुलाया गया और फिर उसे चार दिन में ही क्यों समेट दिया गया! पाँचवें दिन का क्या हुआ? आशंकाएँ तो यही थीं कि पूरा सत्र इतनी गर्माहट से भर जाएगा कि उसे आगे बढ़ाना पड़ेगा। वैसा कुछ भी नहीं हुआ। अंत में जो नज़र आया वह यही था कि आक्रामक विपक्ष और जनता का मूड भाँपते हुए सरकार ने अपने अघोषित एजेंडे पर रणनीतिक रूप से पीछे हटने का तय कर लिया।