पिछले सप्ताह केंद्र में एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा हुआ था। इस अवसर पर अनेक सार्वजनिक मंचों से इस अवधि के दौरान हासिल उपलब्धियों और साहसिक निर्णयों के लिए अपनी पीठ थपथपाई गई। कहा गया कि इतिहास की ग़लतियों को ठीक करने का काम बीते एक साल में किया गया।
देश कोरोना संकट में और मोदी सरकार उपलब्धियों का गीत गा रही है!
- विचार
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- 2 Jun, 2020

उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटने के लिए अनेक माध्यम चुने जाते हैं। इनमें अनाप शनाप पैसा बहाया जाता है। नौकरशाही को इस काम में लगा दिया जाता है। अफ़सर अपनी प्राथमिकताएँ और विकास के काम छोड़कर नेताओं की आरती उतारने का काम शुरू कर देते हैं। कोरोना की महामारी से जूझते हुए इस देश को प्रजातंत्र की देह में चुपचाप दाख़िल हो रही दीग़र बीमारियों से बचाने के प्रयास होने चाहिए।
शानदार बहुमत प्राप्त करके सत्ता में आए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने मुल्क की अवाम से चुनाव प्रचार अभियान में ये वादे किए थे। गठबंधन को कामयाबी मिलने पर इन वादों को पूरा करना सियासी साख बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक था। कश्मीर के संबंध में अनुच्छेद 370 की विदाई भी इसी श्रेणी का ऐतिहासिक फ़ैसला था। इससे तो शायद ही कोई असहमत होगा। लेकिन सत्ता के गलियारों का यह तर्क भी वाज़िब है कि कोरोना संकट काल में ख़ुद को शाबाशी देने का रवैया कितना उचित है। चुनावी वादा था। जीतने के बाद पूरा किया गया। अगर यह राष्ट्र सेवा की जा रही है तो इसके गीत गाने की ज़रूरत क्या थी? मान लीजिए लोगों तक इस उपलब्धि गीत को पहुँचाना ही है तो यह समय क्या उचित है? जब एक महामारी से लोगों की मौत का आँकड़ा दिनों दिन विकराल हो रहा हो, करोड़ों श्रमिकों की जान पर बनी हो, काम-धंधे ठप्प हों और भारत की देह एक राष्ट्रीय शोक गीत से झनझना रही हो तो ऐसे में पीड़ित मानवता से ताली बजाने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।