“हमारे अल्पसंख्यक भाइयों की सुरक्षा करना बहुसंख्यकों का परम कर्तव्य है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं और इसके बजाय मस्जिद में नमाज पढ़ने में व्यस्त रहते हैं, तो उन्हें जवाब देना होगा कि वे सुरक्षा प्रदान करने में विफल क्यों रहे? यह हमारे धर्म का हिस्सा है कि हम अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करें। मैं अपने अल्पसंख्यक भाइयों से माफी माँगता हूँ। हम अशांति के दौर से गुज़र रहे हैं। पुलिस खुद अच्छी स्थिति में नहीं है। इसलिए मैं समाज से आग्रह कर रहा हूँ कि उनकी रक्षा करें। वे हमारे ही भाई हैं और हम सभी एक साथ बड़े हुए हैं।”
क्या अल्पसंख्यकों की सुरक्षा केवल बांग्लादेश में ज़रूरी है, भारत में नहीं?
- विचार
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- 13 Aug, 2024

मुसलमानों के हक़ और उनकी सुरक्षा की बात करना उन्हें ‘भारत की पहचान’ मिटाने की साज़िश लगती है। पर विडंबना यह है कि उसी सेक्युलरिज़्म का हवाला देकर आज पीएम मोदी बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा का सवाल उठा रहे हैं।
यह बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में गृह मामलों के सलाहकार ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत्त) एम. सखावत हुसैन का बयान है। फ़िलहाल उनकी हैसियत देश के गृहमंत्री की तरह है। इस बयान के ज़रिए बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में विफल रहने के लिए पूरी अंतरिम सरकार ने एक तरह से हिंदू समुदाय से माफ़ी माँगी है। सरकार की प्रतिबद्धता का पता इस बात से भी चलता है कि फ़िलहाल प्रधानमंत्री जैसी हैसियत रखने वाले अंतरिम सरकार के मुखिया मो. यूनुस ने भी कहा है कि अगर अल्पसंख्यकों पर हमले बंद नहीं हुए तो वह इस्तीफ़ा दे देंगे।
बांग्लादेश की ‘मॉनसून क्रांति’ का यह सबसे शुभ संदेश है। बांग्लादेश की उथल-पुथल के बीच बनी अंतरिम सरकार ने माना है कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा समाज के ‘सभ्य’ होने की शर्त है और इस कसौटी पर फ़िलहाल बांग्लादेश नाकाम साबित हुआ है। इस ‘जन-क्रांति’ का फ़ायदा उठाकर हिंदुओं को जिस तरह निशाना बनाया गया है, वह बांग्लादेश में सांप्रदायिक ताक़तों की बड़ी पैमाने पर उपस्थिति की गवाही है। मंदिरों और हिंदुओं के घरों की रक्षा करते मदरसों के नौजवानों की तस्वीरों से मिले सुकून के बावजूद यह ज़ख़्म जल्द नहीं भरेगा। यह बांग्लादेश के मुक्ति-संग्राम से जुड़े मूल संकल्पों पर प्रहार है।