पसंद के नौकरशाह बनाने की तरक़ीब यानी ‘लैटरल एंट्री’ को लेकर छिड़े हालिया विवाद में राजनीतिक नुक़सान भाँपकर बैकफ़ुट पर गयी मोदी सरकार के मंत्रियों ने अब कांग्रेस को घेरना शुरू कर दिया है। याद दिलाया जा रहा है कि मनमोहन सिंह, सैम पित्रोदा, रघुराज राजन, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, नंदन निलेकणी जैसे लोगों को कांग्रेस या यूपीए सरकार ने ऐसे ही सरकार के साथ काम करने का मौक़ा दिया था। ये ‘नेहरू ज़िम्मेदार’ सिंड्रोम से निकला वही तर्क है जिसकी आड़ में ‘पूर्ण बहुमत’ के साथ दो कार्यकाल पूरा कर चुकने के बाद भी मोदी सरकार तमाम नाकामियों की ज़िम्मेदारी लेने से भागती रहती है।
मनमोहन के नाम पर लैटरल एंट्री की बदनीयती को ढँक रही मोदी सरकार?
- विचार
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- 23 Aug, 2024

डॉ. आंबेडकर ने सही कहा था कि अच्छे से अच्छा संविधान भी अगर ख़राब लोगों के हाथ पड़ जाये तो ख़राब नतीजे देगा। मोदी सरकार के हाथों लैटरल एंट्री के हथियार का यही अंजाम दिख रहा है।
डॉ. मनमोहन सिंह समेत तमाम दूसरे लोगों का नाम इस सिलसिले में उछालना एक हास्यास्पद तर्क है। कांग्रेस के ज़माने में किसी क्षेत्र विशेष में नाम कमा रहीं विभूतियों को सरकार से जोड़ा गया था न कि लोगों से सरकार में संयुक्त सचिव या उप सचिव बनाने के लिए आवेदन माँगा गया था। कांग्रेस के ज़माने में जिन लोगों को जोड़ा गया था उन्होंने देश की तरक़्क़ी में जो योगदान दिया, उसे विरोधी भी सराहेंगे।