नोबेल से सम्मानित अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस ने जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व सँभालने के लिए पेरिस से ढाका के लिए उड़ान भरी तो उनके ज़ेहन में ‘मई 1968’ की गूँज ज़रूर रही होगी। 56 साल पहले पेरिस के छात्र आंदोलन ने न सिर्फ़ फ़्रांस बल्कि पूरी दुनिया हिला दी थी। चार्ल्स द गाल जैसे राष्ट्र-नायक को फ़्रांस छोड़कर भागना पड़ा था जैसे कि शेख़ हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा है। वैसे तो यह सब अंदाज़ा लगाने जैसा है लेकिन मो. यूनुस की प्रतिक्रिया देखते हुए इसे कल्पना से बाहर भी नहीं कहा जा सकता। मो. यूनुस ने 8 अगस्त को ढाका पहुँचकर कहा- 'हमारे छात्र हमें जो भी रास्ता दिखाएंगे, हम उसी के साथ आगे बढ़ेंगे!’