बात 2009 की है। बीजेपी लोकसभा चुनावों में हार के बाद बेदम पड़ी थी। आरएसएस ने तय कर लिया था कि लालकृष्ण आडवाणी की पीढ़ी को गुड बाय कहने का वक्त आ गया है, और नई पीढ़ी के हाथ में पार्टी की बागडोर सौंपनी चाहिए। तब मनोहर पर्रीकर का नाम उछला था। आईआईटी से पढे़ बेहद ईमानदार नेता की उनकी छवि थी। संघ को लग रहा था कि गोवा का यह पूर्व मुख्यमंत्री बीजेपी की स्टीरियो टाइप इमेज को तोड़ेगा और बदलते समाज से उसे जोड़ेगा। नई ऊर्जा और नए तेवर की तलाश में पार्टी के लिए पर्रीकर बिल्कुल फिट थे। लेकिन उनके एक छोटे-से बयान ने सब गुड़-गोबर कर दिया।