पुलवामा का हमला देश की अस्मिता पर गहरी चोट है। पाकिस्तान ने भारत की संप्रभुता पर घाव करने का प्रयास किया है। उसे इस बात की सख़्त से सख़्त सजा मिलनी चाहिए। भारत के बहादुर सैनिकों ने जैश-ए-मुहम्मद के ठिकानों पर हमला कर कड़ा संदेश दे दिया है कि जो भी भारत को कमज़ोर समझने की भूल करेगा वह मिट्टी में मिला दिया जाएगा। इस क़दम के लिये प्रधानमंत्री की तारीफ़ करनी चाहिए। इन हमलों से आतंकवादियों के दिलों में दहशत मची होगी। वे चूज़ों की तरह भाग रहे होंगे। उनके आका बौखलाये होंगे। सीमा पार से हमला करने की नाकाम कोशिश अपनी बौखलाहट और शर्म को छिपाने की भौंडी कोशिश है। भारत पाकिस्तान की धमकियों से डरने वाला नहीं है। वह पाकिस्तान से करगिल समेत चार जंग लड़ चुका है। उसे शत्रुओं के मंसूबों को पानी में मिलाना आता है। ऐसे में पाकिस्तान फिर कोई ऐसी भूल न करे कि उसे 1971 का दंश झेलना पड़े। तब उसके दो टुकड़े हुये थे। वह दो देशों में बँट गया था।

हैरानी की बात है कि जब बीजेपी और सरकार में बैठे लोग विपक्ष को यह नसीहत दे रहे थे कि सैनिक कार्रवाई पर राजनीति नहीं होनी चाहिए तब पार्टी के अध्यक्ष चुनावी रैलियों में सर्जिकल स्ट्राइक पर अपना सीना ठोक रहे हैं और यह प्रचार किया जा रहा है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’? क्या थोड़ा और इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।