वह मेरा दोस्त है। बरसों हमने साथ रिपोर्टिंग की है। जब भी मिलते हैं एक गर्मजोशी से मिलते हैं। पर जब मैं उसे टीवी पर देखता हूँ तो ग़ुस्सा आता है। इसलिये नहीं कि वह जो कर रहा है, उसे कुछ भी कहा जाये पर वह पत्रकारिता नहीं है। ग़ुस्सा इस बात पर आता है कि उसने टीवी पत्रकारों की एक पूरी पीढ़ी को बरबाद कर दिया है। वे उसकी भौंडी नक़ल करते हैं। उससे तेज़ अंदाज़ में चीख़ते हैं और सामने वाले को चीर-फाड़ देने को तत्पर रहते हैं। पर सरकार का कोई प्रतिनिधि आ जाये तो भीगी बिल्ली बन जाते हैं। विपक्ष इन सबके लिये एक आसान खिलौना है जिससे वे मनचाहे तरीक़े से खेलते हैं जैसे बिल्ली अपने शिकार को खाने के पहले उसके साथ खेलती है, शिकार को तड़पता हुआ देख और उत्तेजित होती है। यह नई टीवी की पत्रकारिता है।