वह राजनीति बदलने आये थे और राजनीति ने ख़ुद उनको ही बदल दिया। अगर आज कोई आम आदमी पार्टी की कहानी लिखना चाहे तो इससे बेहतर टिप्पणी नहीं हो सकती। 2012 में जब आम आदमी पार्टी बनी थी उसका एकमात्र नारा था- 'लोग देश की राजनीति और राजनेताओं से ऊब चुके हैं, उनसे कोई उम्मीद नहीं है, और अब ‘आप’ इस राजनीति को बदलेगी।' पर 2019 आते-आते ‘आप’ हाँफने लगी है और अब उसमें और दूसरी राजनीतिक दलों में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है। वह भी दूसरी पार्टियों जैसी ही हो गयी है, वह भी दूसरे दलों की तरह ही बर्ताव कर रही है। ऐसे में अगर हमारे मित्र और वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ये कहते हैं कि देखो 'कितना बदल गया इंसान' तो किसी को बुरा नहीं मानना चाहिये। अजीत कुछ ज़्यादा ही तल्ख़ हैं। पर यह तल्ख़ी सिर्फ़ उनकी नहीं है। दिल्ली और देश के कोने-कोने में बैठा हर वह शख़्स तल्ख़ है जिसने ‘आप’ से यह उम्मीद पाल रखी थी कि अब देश बदलेगा, बदलेगी देश की राजनीति और बदलेगी भ्रष्ट व्यवस्था।