लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या आम आपराधिक घटना नहीं है। यह आम दुर्घटना भी नहीं है कि प्रदर्शनकारी किसान गाड़ी के नीचे आ गये। यह किसानों के लिए हत्यारों में घोर नफ़रत का अंजाम है। मगर, ऐसी जानलेवा नफ़रत किसी हत्यारे में क्यों होगी, ख़ासकर तब जबकि व्यक्तिगत रूप से कोई दुश्मनी ना हो? बर्बरता की शक्ल में ये नफ़रत और क्रूरता वास्तव में सत्ता के अहंकार को प्रकट करती हैं। हत्यारे तो बस अहंकारी सरकार के प्रतिनिधि हैं।
लखीमपुर खीरी: क्या पाँच साल तक इंतज़ार करेगी ज़िन्दा कौम?
- विचार
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- 4 Oct, 2021

लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ जो हुआ वह क्या मात्र एक घटना है या फिर राजनैतिक नेतृत्व की शह का नतीजा? क्या प्रदर्शन कर रहे किसानों पर यूँ ही गाड़ी चढ़ गई?
लखीमपुर खीरी में हत्या का आरोप जिस व्यक्ति पर है वह सिर्फ़ कहने भर के लिए सत्ता के अहंकार का प्रतिनिधि नहीं है, बल्कि वास्तव में वह पुत्र है देश के केंद्रीय गृहराज्यमंत्री का। हत्या की वारदात एक बेटे ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को मज़बूत करने के लिए की है या सत्ता के अहंकार ने एक मंत्री पुत्र को घातक हथियार में बदल दिया है, इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है।