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लखीमपुर खीरी: क्या पाँच साल तक इंतज़ार करेगी ज़िन्दा कौम?

लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्या आम आपराधिक घटना नहीं है। यह आम दुर्घटना भी नहीं है कि प्रदर्शनकारी किसान गाड़ी के नीचे आ गये। यह किसानों के लिए हत्यारों में घोर नफ़रत का अंजाम है। मगर, ऐसी जानलेवा नफ़रत किसी हत्यारे में क्यों होगी, ख़ासकर तब जबकि व्यक्तिगत रूप से कोई दुश्मनी ना हो? बर्बरता की शक्ल में ये नफ़रत और क्रूरता वास्तव में सत्ता के अहंकार को प्रकट करती हैं। हत्यारे तो बस अहंकारी सरकार के प्रतिनिधि हैं।

लखीमपुर खीरी में हत्या का आरोप जिस व्यक्ति पर है वह सिर्फ़ कहने भर के लिए सत्ता के अहंकार का प्रतिनिधि नहीं है, बल्कि वास्तव में वह पुत्र है देश के केंद्रीय गृहराज्यमंत्री का। हत्या की वारदात एक बेटे ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को मज़बूत करने के लिए की है या सत्ता के अहंकार ने एक मंत्री पुत्र को घातक हथियार में बदल दिया है, इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है।

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खट्टर ने खट्टा किया माहौल?

अभी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का वह वीडियो वायरल हो ही रहा था जिसमें बीजेपी कार्यकर्ताओं को बड़ा नेता बनने के लिए जेल जाने का गुरुमंत्र दिया जा रहा था। वायरल वीडियो में सीएम खट्टर की भाषा कुछ ऐसी है, “500, 700, 1000 लोगों का समूह बनाओ, उन्हें स्वयंसेवक बनाओ। और उसके बाद हर जगह ‘शठे शाठ्यं समाचरेत’। इसका क्या अर्थ है…इसका मतलब है जैसे को तैसा।”

बड़ा सवाल यह है कि क्या एक मुख्यमंत्री का गुरुमंत्र केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के पुत्र ने ग्रहण कर लिया? क्या केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र ने नेता बनने के लिए जेल जाने की ठान ली? क्या जेल जाने की गरज से प्रदर्शनकारी किसानों की जान ली गयी? ये सारे सवाल इसलिए पैदा हो रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने खुलेआम जो कहा उस पर अमल होने में कुछ घंटे ही लगे।

केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा ने अपने बेटे को क्लीन चिट देने में क्षण भर की भी देरी नहीं की। कह डाला कि उनका बेटा घटनास्थल पर था ही नहीं, गाड़ी चला ही नहीं रहा था। उन्होंने किसानों पर ही बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले और उनकी जान लेने का आरोप लगाया है और गाड़ी में आग लगाते वीडियो पास होने का दावा भी किया है। 

महत्वपूर्ण बात यह है कि किसानों की प्रतिक्रिया क्रूर हत्याकांड के बाद की है या पहले की- इसका पता जाँच के बाद ही लग सकता है। मगर, केंद्रीय मंत्री ने अपने पुत्र को बचाने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है।

योगी आदित्यनाथ की रुचि?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना के बाद जो प्रतिक्रिया दी है उसका आशय भी समझना ज़रूरी है। किसानों को गाड़ी से रौंद कर मार डालने की घटना में प्रथम दृष्टया साक्ष्य और उस आधार पर गिरफ्तारी की बात सीएम योगी नहीं करते। सीएम योगी घटना की तह तक जाकर असल दोषियों को बेनकाब करने की बात कह रहे हैं। मतलब साफ़ है कि किसानों ने मंत्री पुत्र पर गाड़ी से कुचलकर अपने साथियों की हत्या का जो आरोप लगाया है उसे सीएम ने ‘घटना की तह तक’ जाने के नाम पर एक तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया है। ऐसे में मंत्री पुत्र की गिरफ्तारी की उम्मीद दिखलायी नहीं देती।

lakhimpur kheri farmers killing and political discourse - Satya Hindi

किसानों के विरोध में बीजेपी के दो-दो मुख्यमंत्री साफ़ तौर पर खड़े दिख रहे हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री बीजेपी कार्यकर्ताओं को बड़ा नेता बनने के लिए 500-1000 लोगों को खड़ा करने और जैसे को तैसा वाली प्रतिक्रिया देने की बात कह रहे हैं। जबकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसी घटना घट जाने के बाद ‘घटना की तह तक जाने’ की बात कहकर प्रथम दृष्टया दोषी लोगों को जेल जाने से बचाने का इंतज़ाम कर रहे हैं। 

क्यों अभूतपूर्व है लखीमपुर खीरी की घटना?

लखीमपुर की घटना इसलिए अभूतपूर्व है क्योंकि इस घटना को अंजाम देने का आरोप केंद्रीय गृहमंत्री के पुत्र पर है तो घटना से पहले किसानों पर जुल्म करने का गुरुमंत्र और जुल्म करने वालों को बचाने की रणनीति लेकर दो-दो सूबे के मुख्यमंत्री सामने खड़े हैं। किसानों के लिए यह लड़ाई भी इसलिए अभूतपूर्व हो गयी है क्योंकि उसे डबल इंजन की सरकारों से लड़ना है और मुख्यमंत्रियों व केंद्रीय मंत्रियों से लोहा लेना है। ऐसा करते हुए किसानों की ओर से दी जा रही कुर्बानियों को आंका जाना संभव नहीं रह गया है। 

प्रतिकूल परिस्थितियों में सतत आंदोलन, 700 से ज़्यादा किसानों की आंदोलन के दौरान मौत, लाठी-गोली, वाटरकैनन सबकुछ सहते हुए उपद्रवियों के समूह द्वारा पुलिस के संरक्षण में पत्थरों से हमले भी किसानों ने झेले हैं।

मगर, अब तो सरकार ने किसानों के ख़िलाफ़ अपराध की भी खुली छूट दे दी है। आंदोलन को कुचला जाना तो देश में सामान्य हो गया था, लेकिन आंदोलनकारियों को कुचला जाना देश ने पहली बार देखा और सुना है।

पीड़ित किसान ही होंगे जांच के दायरे में?

इल्जाम आंदोलनकारियों पर ही थोपे जाने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं। जांच की दिशा वही होगी जिस बारे में मुख्यमंत्री योगी ने संदेश दे दिया है। पुलिस सामने दिख रहे सबूत को नहीं देखेगी। वह घटना की तह तक जाकर सबूत खोजेगी। जो बेनकाब होकर किसानों को कुचल रहे थे उनकी ओर से क़ानून के पहरेदारों की आँखों पर शायद पट्टी बंधी रहेगी। लेकिन, कुचले गये किसानों के बीच से ही उपद्रवियों को खोज निकालने की कवायद अधिक नज़र आने वाली है। लेकिन क्या ऐसा करके कोई सरकार बनी रह सकती है? यह किसी लोकतांत्रिक देश में पूछा जाने वाला सबसे मौजूं सवाल है।

विचार से ख़ास
लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत स्वाभाविक नहीं है। यह हत्या है। हत्यारे व्यक्तिगत फायदे के लिए नहीं, राजनीतिक मक़सद के लिए काम पर लगे थे। ऐसे में यह मामला आम किसान बनाम अपराधी नहीं है। यह मामला आंदोलनकारी किसानों के विरुद्ध आपराधिक तौर-तरीक़े आजमाने का है। लोकतंत्र पर शासनतंत्र के हावी होने का यह अवसर है। इस अवसर पर लोकतंत्र का इम्यून सिस्टम अवश्य जवाब देगा। लोकतंत्र की जीवनदायिनी जनता की धमनियों में बह रहा ख़ून ख़ामोश नहीं रह सकता। मगर, यह ख़ामोशी कैसे टूटेगी। क्या पांच साल तक इंतज़ार करेगी ज़िन्दा कौम?
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प्रेम कुमार
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