कथित मुख्यधारा की पत्रकारिता का हाल देखते हुए न्यूज़ चैनल के ऐंकर और ऐंकरानियों का ‘इंडियन स्टेट’ और ‘इंडियन रिपब्लिक’ में फ़र्क़ न कर पाना स्वाभाविक है। लेकिन केंद्र में हुकूमत कर रही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का भी यह फ़र्क़ न समझना चिंता की बात है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि अगर चुनाव आयोग समेत कई संवैधानिक संस्थाओं और एजेंसियों के पक्षपात के व्यापक संदर्भ में दिया गया ‘इंडियन स्टेट से संघर्ष’ का राहुल गाँधी का बयान ‘देश तोड़ने वाला’ है तो फिर इमरजेंसी लगने से पहले भारत की सेना और पुलिस से इंदिरा सरकार के आदेशों को न मानने का आह्वान करने वाला जय प्रकाश नारायण का बयान क्या था? क्या जे.पी.नड्डा, राहुल गाँधी की तरह जेपी को भी ‘देश-तोड़क’ कहेंगे?
राहुल गाँधी ने 15 जनवरी को कांग्रेस मुख्यालय के उद्घाटन समारोह में देश के हालात का गंभीर विश्लेषण पेश किया था। उन्होंने कहा था कि 15 अगस्त 1947 को सच्ची आज़ादी मिलने से इंकार करके आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ‘देशद्रोह’ जैसा काम किया है। किसी और देश में इस बयान के बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया होता। उन्होंने आरोप लगाया था कि आरएसएस ने देश की लगभग हर संस्था पर क़ब्ज़ा कर लिया है। राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच एक करोड़ मतदाताओं के बढ़ने को लेकर चुनाव आयोगी की चुप्पी का सवाल उठाते हुए कहा, ‘हम सिर्फ़ बीजेपी नामक राजनीतिक संगठन और आरएसएस से नहीं बल्कि इंडियन स्टेट से लड़ रहे हैं।’
लेकिन लोकतंत्र पर छाये संकट के राहुल गाँधी के विश्लेषण का जवाब देने के बजाय बीजेपी ‘इंडियन स्टेट से संघर्ष’ की उनकी बात को ले उड़ी और राहुल गाँधी को देश-तोड़क बताने में जुट गयी। पार्टी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने कहा कि ख़ुद राहुल गाँधी ने यह घिनौना सच सबके सामने उजागर कर दिया है कि 'वह भारत को तोड़ने और समाज को विभाजित करने की दिशा में हैं।’ यानी जे.पी.नड्डा की नज़र में ‘इंडियन स्टेट’ और ‘इंडियन रिपब्लिक’ में कोई फ़र्क़ नहीं है। यानी ‘भारत सरकार’ के ख़िलाफ़ बोलना ‘भारत’ के ख़िलाफ़ बोलना है। आश्चर्य नहीं कि तमाम न्यूज़ चैनलों ने इसी लाइन पर कांग्रेस विरोधी माहौल बनाने में ख़ुद को झोंक दिया। राहुल गाँधी के उठाये तमाम गंभीर सवालों पर चर्चा के लिए उसके पास कोई समय नहीं था।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बचपन जिस पटना में बीता है वह कभी इमरजेंसी के ख़िलाफ़ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले संपूर्ण क्रांति आंदोलन का केंद्र था। जे.पी.नड्डा जवानी की दहलीज़ पर ही आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी से जुड़ गये थे। उन्हें निश्चित ही पता होगा कि इस आंदोलन के शीर्ष नेतृत्व ने किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था, इसके बावजूद इंदिरा गाँधी ने किसी की ‘भारत-निष्ठा’ पर संदेह नहीं जताया था।
इंदिरा गाँधी की सरकार ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी। लेकिन दिन में क्या हुआ था यह बात भुला दी जाती है।
‘सेना’ और ‘पुलिस’ इंडियन स्टेट का अहम अंग है। अगर इंडियन स्टेट के ख़िलाफ़ संघर्ष की बात करना देश तोड़ना है तो जे.पी. भी इसके ‘अपराधी’ सिद्ध होंगे। वैसे, यह कोई एक मामला नहीं था। महँगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शुरू हुए आंदोलन के तहत 1974 में जो रेल हड़ताल हुई थी, वह भी ‘इंडियन स्टेट’ के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा थी। रेल हड़ताल का नेतृत्व करने वाले उस दौर के फ़ायरब्रांड समाजवादी नेता जॉर्ज फ़र्नांडिस ने दलील दी थी, “रेल से कोयले की ढुलाई रुक जाएगी तो सारे बिजली घर बंद हो जाएँगे। इसका नतीजा ये होगा कि सारे उद्योग धंधे ठप हो जाएँगे। खाद्य पदार्थों की ढुलाई भी रुक जाएगी, देश ‘भूखा’ रहेगा और इंदिरा सरकार का ‘पतन’ हो जाएगा।”
यही नहीं, सीबीआई ने जॉर्ज फ़र्नांडिस और उनके साथियों पर सरकारी प्रतिष्ठानों और रेल पटरियों को उड़ाने के लिए डायनामाइट की तस्करी का आरोप भी लगाया था। यह ‘बड़ौदा डायनामाइट कांड’ के नाम से मशहूर है। इस कांड में शामिल लोगों पर ‘राज्य’ के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया गया था, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि इन्होंने देश के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ा था। यह भी याद रखना चाहिए कि 1975 की शुरुआत में रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र की टाइमबम से हत्या कर दी गयी थी। यह देश में किसी कैबिनेट मंत्री की पहली हत्या थी।
ज़ाहिर है, उस दौर में ‘इंडियन स्टेट’ और ‘इंडियन रिपब्लिक' का फ़र्क़ राजनीति के हर विद्यार्थी और पत्रकारों को पता था। यही वजह है कि किसी ‘राष्ट्रवादी’ ने जे.पी. के नेतृत्व और मंशा पर सवाल नहीं उठे और जॉर्ज फ़र्नांडिस की हथकड़ी लगी तस्वीरें 1977 के चुनाव में प्रचार के लिए इस्तेमाल की गयीं। आरएसएस के बनाये राजनीतिक दल जनसंघ ने जनता पार्टी में अपना विलय कर लिया और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी सरकार में जनसंघ कोटे से अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। साथ ही जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले ‘डायनामाइट कांड’ के आरोपी जार्ज फ़र्नांडिस भी कैबिनेट मंत्री बने।
लेकिन जे.पी. नड्डा की नज़र में ‘इंडियन स्टेट से लड़ने’ की बात, ‘राहुल गाँधी के इकोसिस्टम के अर्बन नक्सल और डीप स्टेट के साथ घनिष्ठ संबंध’ उजागर करता है, जो भारत को अपमानित और बदनाम करना चाहते हैं। ये आरोप बेहद गंभीर है। ख़ासतौर पर जब राहुल गाँधी लोकसभा में नेताप्रतिपक्ष भी हैं। लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अगर सचमुच गंभीर हैं तो उन्हें राहुल गाँधी से पहले जे.पी. को ‘देश-तोड़क’ कहना चाहिए और संपूर्ण क्रांति आंदोलन में भागीदारी के लिए माफ़ी माँगनी चाहिए।
अपनी राय बतायें