हंगामे का रास्ता हमेशा ही सबसे आसान होता है, लेकिन उसे लेकर अगर कोई ठोस नीति बनानी हो तो हंगामे के पीछे की सारी भावना ठंडी पड़ जाती है। मध्य प्रदेश में गौ-रक्षा के नाम पर जो हो रहा है उसे देख कर यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है। यही वजह है कि मध्य प्रदेश में हुई गौ-कैबिनेट की चर्चा जितनी उसकी बैठक से पहले हुई, बैठक के बाद उतनी नहीं हुई क्योंकि उसमें ऐसा कुछ हुआ ही नहीं कि कोई बड़ी चर्चा हो सके। सिवाय इसके कि राज्य सरकार अपनी ढेर सारी गौशालाएँ चलाने के लिए लोगों पर टैक्स लगाएगी।
मध्य प्रदेश में हुई गौ-कैबिनेट की चर्चा जितनी उसकी बैठक से पहले हुई, बैठक के बाद उतनी नहीं हुई क्योंकि उसमें ऐसा कुछ हुआ ही नहीं कि कोई बड़ी चर्चा हो सके। क्या बीजेपी को वाक़ई गाय की चिंता है?
गौ-रक्षा के नाम पर जो सांप्रदायिक तनाव और हिंसा होती है उसे लेकर तो खैर सरकार को कुछ बोलना भी नहीं था इसलिए ऐसा कुछ कहा नहीं गया। बाक़ी इस बैठक के बाद ’पहली रोटी गाय को, आखिरी रोटी कुत्ते को’ और गौ-संवर्धन जैसी कुछ बातें कही गईं जो पिछले कुछ समय से ऐसे मौक़ों पर अक्सर कही जाती हैं।