सोशल मीडिया पर एक तसवीर बहुत ज़्यादा चलाई जा रही है- इसमें आंदोलन कर रहे किसानों के हाथों में भीमा कोरेगाँव, शाहीनबाग़ और दिल्ली दंगों के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों के पोस्टर हैं। इसके साथ ही पूछा जा रहा है कि संसद में पास किए गए तीन कृषि बिलों का इन गिरफ्तार नेताओं से क्या लेना देना। जाहिर है कि इस तसवीर से बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों को आंदोलन के ख़िलाफ़ बोलने का एक और तर्क मिल गया है। अभी तक इस आंदोलन को एक साज़िश की तरह बताने की बहुत सी कोशिशें की गई हैं और उसके लिए यह तसवीर अब सबूत की तरह पेश की जा रही है।

अभी हमें पता नहीं है कि यह आंदोलन कितना लंबा चलेगा। सरकारें आमतौर पर ऐसे आंदोलनों को थका कर ख़त्म करने की कोशिश भी करती हैं। कितनी माँगें मानी जाएँगी और कितनी नहीं, यह भी अभी नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक बात तय है कि दिल्ली की सीमाओं पर डटे ये किसान जब अपने खेतों पर लौटेंगे तो व्यवस्था और संगठित होने की अपनी क्षमताओं के बारे में उनका नज़रिया बदला हुआ होगा।