क्या कृषि क़ानून केवल कारपोरेट घरानों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए हैं? क्या इसका कोई वैचारिक आधार भी हो सकता है? क्या मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीति के पीछे कोई समाजनीति भी है?