देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में पंचायत चुनाव शुरू हो चुके हैं। 75 ज़िलों की 58194 ग्राम पंचायतों के लिए अप्रैल माह की 15, 19, 26 और 29 तारीख़ को चार चरणों में वार्ड सदस्य से लेकर प्रधान, बीडीसी और ज़िला पंचायत सदस्यों के चुनाव होंगे। परिणाम 2 मई को आएँगे। विधानसभा चुनाव के एक साल पहले होने वाले पंचायत चुनावों को भी राजनीतिक दलों की ताक़त के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है।

पंचायती राज व्यवस्था को राजनीति के विकेंद्रीकरण के लिए ज़रूरी माना गया। लेकिन पंचायत चुनाव के कारण गाँवों में गुटबंदी बढ़ी है। प्रतिद्वंद्वी और उसके समर्थकों पर हमले चुनाव और उसके बाद भी होते रहते हैं। गाँवों में वैमनस्यता बढ़ी है। चुनाव में शराब के कारण लड़ाई झगड़े भी बढ़ जाते हैं...
दरअसल, ज़िला पंचायत सदस्य के लिए आमतौर पर राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारते हैं। लेकिन इसकी असली ताक़त का प्रदर्शन ग्राम प्रधान चुनाव में होता है। इसीलिए संघ और बीजेपी अब ग्राम प्रधान चुनावों में हस्तक्षेप करके अपनी राजनीति को और अधिक मज़बूत करना चाहते हैं। यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार ने ग्राम प्रधानों के लिए एक सम्मानजनक वेतनमान का सरकारी आदेश जारी किया है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।