यूपी में पंचायत चुनाव बीत चुके हैं। चुनाव का हलाहल गंगा में तैरती लाशों के रूप में प्रकट हो रहा है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार चुनाव ड्यूटी पर तैनात रहे एक हज़ार से अधिक सरकारी कर्मचारी कोरोना से कालकवलित हो चुके हैं। सरकार की तरफ़ से न तो उनके परिवार को कोई मुआवजा देने की घोषणा हुई है और न ही उनके आश्रितों को नौकरी देने की पेशकश अभी तक की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे परिवारों को एक करोड़ रुपए मुआवजा देने का सरकार को निर्देश दिया है।

पच्चीस करोड़ की आबादी वाले यूपी में बीजेपी के ही तमाम मंत्रियों और विधायकों के तीखे बयानों के बावजूद योगी आदित्यनाथ अपनी प्रशासनिक अधिकारियों की टीम इलैवन से कोरोना संकट से निपटने का दिखावा कर रहे हैं। यूपी में टीकाकरण की दर सबसे कम बताई जा रही है। गाँव के ग़रीब दलित पिछड़ों तक टीकाकरण की पहुँच न के बराबर है। ऐसे में पूछा जा सकता है कि क्या यही रामराज्य है?
चुनाव के बीच में ही गाँवों से कोरोना संक्रमण की ख़बरें आने लगी थीं। अब इसके भयावह परिणाम सामने आने लगे हैं। रोज ही हज़ारों की तादाद में लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं। बुखार के कारण इन मौतों को होना बताया जा रहा है। जबकि टेस्टिंग नहीं होने के कारण कोविड की पुष्टि नहीं हो पा रही है। सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से भागने की कोशिश कर रही है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।