इजरायल की एक कम्पनी द्वारा ‘हथियार’ के तौर पर विकसित और आतंकवादी तथा आपराधिक गतिविधियों पर काबू पाने के उद्देश्य से ‘सिर्फ़’ योग्य पाई गईं सरकारों को ही बेचे जाने वाले अत्याधुनिक और बेहद महंगे उपकरण का चुनिन्दा लोगों की जासूसी के लिए इस्तेमाल किए जाने को लेकर देश की विपक्षी पार्टियों के अलावा किसी भी और में कोई आश्चर्य, विरोध या ग़ुस्सा नहीं है। मीडिया के एक धड़े द्वारा किए गए इतने सनसनीखेज खुलासे को भी पेट्रोल, डीजल के भावों में हो रही वृद्धि की तरह ही लोगों ने अपने घरेलू ख़र्चों में शामिल कर लिया है। यह संकेत है कि सरकारों की तरह अब जनता भी उदासीनता के गहराते कोहरे की चादर में दुबकती जा रही है।
अपनी जासूसी किए जाने से नाराज़ क्यों नहीं हैं नागरिक?
- विचार
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- 30 Jul, 2021

पेगासस जासूसी काण्ड में भारत सहित जिन दस देशों के नाम प्रारम्भिक तौर पर सामने आए थे उनके बारे में पश्चिमी देशों का मीडिया यही आरोप लगा रहा है कि इन स्थानों पर अधिनायकवादी व्यवस्थाएँ कायम हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि हमारे नागरिकों को सिर्फ़ जासूसी ही नहीं, इस तरह के आरोपों के प्रति भी कोई आपत्ति नहीं है।
सरकार ने अभी तक न तो अपनी तरफ़ से यह माना है कि उसने स्वयं ने या उसके लिए किसी और ने अपने ही देश के नागरिकों की जासूसी के लिए इन ‘हथियारों’ की खरीदारी की है और न ही ऐसा होने से मना ही किया है। सरकार ने अब किसी भी विवादास्पद बात को मानना या इंकार करना बंद कर दिया है। नोटबंदी करने का तर्क यही दिया गया था कि उसके ज़रिये आतंकवाद और काले धन पर काबू पाया जाएगा। लॉकडाउन के हथियार की मदद से कोरोना के महाभारत युद्ध में इक्कीस दिनों में विजय प्राप्त करने की गाथाएँ गढ़ी गई थीं। दोनों के ही बारे में अब कोई बात भी नहीं छेड़ना चाहता। विभिन्न विजय दिवसों की तरह देश में ‘नोटबंदी दिवस’ या ‘लॉकडाउन दिवस’ नहीं मनाए जाते।