अमेरिका में एक अश्वेत नागरिक की गोरे पुलिसकर्मी के घुटने के नीचे हुई मौत से भारत देश के एक सौ तीस करोड़ नागरिकों को ज़्यादा सरोकार नहीं है। निश्चित ही इस तरह की घटनाएँ हमें कहीं से परेशान नहीं करतीं। उसके कई कारण भी हैं। सरकार की ओर से किसी प्रतिक्रिया की उम्मीद इसलिए नहीं की जा सकती है कि हम न तो दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में कोई हस्तक्षेप करते हैं और न ही अपने मामलों में बर्दाश्त करते हैं।
नस्लवादी अमेरिकी ही नहीं, चमड़ी के रंग व जाति के नस्लवाद में भारतीय भी जकड़े!
- विचार
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- 16 Jun, 2020

जॉर्ज फ़्लॉयड की पुलिस के हाथों हुई मौत, अश्वेतों के साथ हर स्तर पर होने वाले भेदभाव या फिर अमेरिका और यूरोप में इस समय जो कुछ चल रहा है उसके प्रति अगर हमें ज़रा सी भी सिहरन नहीं हो रही है तो फिर यही माना जा सकता है कि चमड़ी के रंग और जाति के नस्लवाद के प्रति हमारा केवल मौन समर्थन ही नहीं है उसमें हमारी अप्रत्यक्ष भागीदारी भी है।
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के कथित हनन को लेकर हाल ही में जारी अमेरिकी रिपोर्ट को सरकार की ओर से ख़ारिज कर दिया गया है, हालाँकि उसमें कुछ ऐसे तथ्यों की ओर ध्यान दिलाया गया है जिनका सम्बंध संविधान में प्रदत मानवाधिकारों के उल्लंघन से है। पिछली रिपोर्ट को भी ऐसे ही ख़ारिज कर दिया गया था। हम अमेरिका से प्राप्त होने वाले वेंटिलेटर स्वीकार कर सकते हैं और हथियार ख़रीद सकते हैं पर उसकी संस्थाओं द्वारा तैयार की जाने वाली रिपोर्टें हमें बिलकुल स्वीकार नहीं हैं।