मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और फाग के

ऐसे वक़्त में जब देश दिल्ली के दंगों से लहुलूहान है, जब नफ़रत की दीवार खड़ी की जा रही है, होली प्रेम और विश्वास का संदेश देती है। और इस होली में हिन्दू भी डूबा है और मुसलमान भी। सत्य हिन्दी ने होली के रंग को देखा है मुसलिम शायरों की नज़र से।
हमसे तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के
-मुसहफी ग़ुलाम हमदानी
एक उदार मुसलिम परिचित तहसीन आलम ने ताज़ा हालात पर चिंता जताते हुए हताश स्वर में कहा - आप लोग बार-बार गंगा-जमुनी संस्कृति की बात करते हैं, कब था ऐसा वक़्त। हमने तो जब से होश संभाला, ऐसा नहीं देखा। ये क्या चीज होती है...। दोनों तरफ़ हमेशा तलवारें खिंची रहती हैं। जाने कितने जन्मों से बैर चला आ रहा है। उनके परम मित्र विजय बसंल भी कटु हो उठते हैं कि क्यों होली, दीवाली पर मुसलिम कामगारों को छुट्टी नहीं मिलती, वे क्यों उस दिन उदासीन रहते हैं, काम पर जाते हैं, वे क्यों नहीं हमारे पर्व, त्योहारों में शामिल होते हैं। जबकि हमने ईद मनानी शुरू कर दी है। किसके पास जवाब है?