हाथरस की घटना का केंद्र की मोदी और राज्य की योगी सरकार की राजनीतिक ज़रूरतों के नज़रिए से विश्लेषण किए बिना उसकी गम्भीरता का अनुमान लगाना सम्भव नहीं होगा। इस तरह की घटनाओं में पीड़ित वर्ग और उस पर अत्याचार करने वाले तबक़े को प्राप्त होने वाले सभी तरह के संरक्षण को सत्तारूढ़ दल की चुनावी आवश्यकताओं के संदर्भों में देखा जाए तो इस बात की आलोचना की निरर्थकता से साक्षात्कार होने लगेगा कि राज्य की कट्टर हिंदूवादी सरकार के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई करने में केंद्र की हुकूमत के हाथ क्यों बंधे हुए हैं।
हाथरस: ‘ऑनर किलिंग’ बताना राजनीति का अत्यंत ही घिनौना चेहरा
- विचार
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- 7 Oct, 2020

हम केवल ऊपरी तौर पर ही अनुमान लगा रहे हैं कि हाथरस ज़िले के एक गाँव में एक दलित युवती के साथ हुए नृशंस अत्याचार और उसके कारण हुई मौत से सरकार डर गई है। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। सरकारें इस तरह से डर कर काम नहीं करतीं। ऐसी ही कुछ और घटनाएँ हो जाने दीजिए। हम लोग हाथरस को भूल भी जाएँगे और ज़्यादा डरने भी लगेंगे : अपराधियों और सरकार -दोनों से!