हरिद्वार (उत्तराखंड) में पिछले दिनों संपन्न विवादास्पद ‘धर्म संसद’ में भाग लेने वाले सैकड़ों महामंडलेश्वरों, संतों, हज़ारों श्रोताओं और आयोजन को संरक्षण देने वाली राजनीतिक सत्ताओं के लिए हालिया समय थोड़ी निराशा का हो तो आश्चर्य की बात नहीं। किसी को उम्मीद नहीं रही होगी कि एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ सशस्त्र संघर्ष प्रारम्भ कर हिंदू राष्ट्र क़ायम करने की मंशा से जिस तरह के उत्तेजनापूर्ण भाषण धर्म संसद में दिए गए उनका न तो देश के एक सौ आठ करोड़ हिंदू उत्साह के साथ स्वागत करेंगे और न ही इक्कीस करोड़ मुसलमान अचानक से डरने लगेंगे।
क्या देश को वाक़ई गृह युद्ध की ओर धकेला जा रहा है?
- विचार
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- 29 Dec, 2021

बीजेपी अगर धर्म संसद जैसे अतिवादी आयोजनों पर अंकुश नहीं लगाएगी तो उससे मुसलमानों का तो कम नुक़सान होगा, उसके अपने प्रतिबद्ध हिंदू वोट बैंक में ममता, उद्धव, अखिलेश, केजरीवाल आदि के साथ-साथ अब प्रियंका और राहुल भी बड़ी सेंध लगा देंगे।
धर्म संसद में कही गई बातों को यहाँ दोहराने की ज़रूरत इसलिए नहीं कि धार्मिक उत्तेजना फैलाने के आरोप में वक्ताओं के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई का होना अभी बाक़ी है। संदेह है कि न्यायपालिका भी इस बाबत कोई संज्ञान लेना चाहेगी। इस तरह की कोई धर्म संसद अगर किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने आयोजित की होती तो उसके आयोजकों और वक्ताओं के ख़िलाफ़ देशद्रोह के हज़ारों मुक़दमे क़ायम हो जाते। (तबलीगी जमात को लेकर मीडिया की मदद से जिस तरह का विषाक्त माहौल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश भर में बनाया गया था उसका स्मरण किया जा सकता है।) हरिद्वार-आयोजन को लेकर भाजपा के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता की एक अंग्रेज़ी समाचार पत्र को दी गई प्रतिक्रिया यही थी कि : “धर्म संसद के विषय में आप धर्म संसद वालों से ही पूछिए।”