नए साल का स्वागत हमें ख़ुशियाँ मनाते हुए करना चाहिए या कि पीड़ा भरे अश्रुओं के साथ? लोगों की ताज़ा और पुरानी याददाश्त में भी कोई एक साल इतना लम्बा नहीं बीता होगा कि वह ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले! इतना लम्बा कि जैसे उसके काले और घने साये आने वाली कई सुबहों तक पीछा नहीं छोड़ने वाले हों। याद कर-करके रोना आ रहा है कि एक अरसा हुआ जब ईमानदारी के साथ हंसने या ख़ुश होकर तालियाँ बजाने का दिल हुआ होगा।
आपको नया साल मुबारक! सब कुछ ठीक तो है न?
- विचार
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- 1 Jan, 2021

...और अब ये जो हज़ारों की तादाद में किसान अपने सारे दुःख-दर्द भूलकर कड़कती ठंड में देश की राजधानी की सड़कों पर डेरा डाले हुए हैं वे भी तो कुछ उम्मीदें लगाए हुए होंगे कि नए साल में सब कुछ ठीक होने वाला है। उनके लिए यह भी क्या कम है कि देश की जनता उनसे बार-बार पूछ रही है -‘सब कुछ ठीक तो है न’!
यह जो उदासी छाई हुई है वह हरेक जगह मौजूद है, दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों, कोनों और दिलों में। काफ़ी कुछ टूट या दरक गया है इस बीच। जिन जगहों पर बहुत ज़्यादा रोशनी होने का भ्रम हो रहा है हो सकता है वहाँ भी अंदर ही अंदर घुटता कोई अव्यक्त अंधेरा ही मौजूद हो। कई बार ऐसा होता है कि अंधेरों में जिंदगियाँ हासिल हो जाती है और उजाले सन्नाटे भरे मिलते हैं। चेहरों के ज़रिए प्रसन्नता की खोज के सारे अवसर वर्तमान पीड़ाओं ने ज़बरदस्ती करके हमसे हड़प लिए हैं।