गुजरात में बीजेपी अजेय है। वह तब तक अजेय है जब तक मोदी-शाह हैं। इस किस्म का संदेश देने में एक जमात लगी हुई है। इनमें सर्वे करने वाले, ‘ज़मीनी’ पत्रकार, खास किस्म के राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया के लोग शामिल हैं। बीजेपी की जीत निश्चित मानकर भी नयी-नयी थ्योरी देने के लिए ये सारे प्लेटफॉर्म न सिर्फ सक्रिय हैं, बल्कि चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ-साथ इनकी आवाज़ अब शोर बन चुकी है।
हर हफ्ते जनता का पल्स पकड़ने का दावा करने वालों की पल्स बेकाबू है। जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी, आम आदमी पार्टी की एंट्री, अंदरूनी बगावत और कांग्रेस के बगैर शोर वाले चुनाव प्रचार के बीच बीजेपी के लिए चुनाव मुश्किल हो चुका है। ऐसे में हफ्तेवार पल्स पकड़ने वाले सियासी विशेषज्ञ यह बता रहे हैं कि जब तक गुजराती प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की जोड़ी है तब तक गुजरात में बीजेपी को हराया नहीं जा सकता। गुजराती अस्मिता, गौरव और अभिमान के साथ जुड़े लोग बीजेपी के खिलाफ मतदान नहीं करेंगे।
असरदार है एंटी इनकंबेंसी
क्या वाकई गुजरात में एंटी इनकंबेंसी धराशायी हो चुकी है? अगर ऐसा होता तो क्यों बीजेपी की सीटें लगातार कम होती चली गयी होती? क्यों विपक्षी दल कांग्रेस की सीटें लगातार बढ़ रही होती? 2017 का विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा उदाहरण है जब प्रधानमंत्री बन चुके थे नरेंद्र मोदी। बीजेपी सत्ता में जरूर लौटी, लेकिन सिर्फ 99 सीटों के साथ। 5 हजार से कम वोटों से जीतने वाली सीटों को अगर छोड़ दें तो बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी होती। मतलब साफ है कि एंटी इनकंबेंसी भी बढ़ी है और नरेंद्र मोदी का तिलिस्म भी घटा है।
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‘जमीनी हकीकत’ देखने का दावा करने वाले लोग कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी पर हमला करना भी बीजेपी की रणनीति थी और अब आप के बजाए कांग्रेस पर हमला करना भी बीजेपी की नयी रणनीति है। सच यह है कि एक रणनीति फेल होती है तभी दूसरी रणनीति पर अमल होता है।
कांग्रेस के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की थ्योरी!
दृष्टि दोष के साथ ज़मीनी हकीकत देख रहे लोगों का दूसरा तर्क होता है कि गुजरात में एंटी इनकंबेंसी है लेकिन वह कांग्रेस के खिलाफ है क्योंकि 27 साल से बदलाव के लिए कांग्रेस को वोट करने वाले लोग निराश हो चुके हैं। ऐसे निराश वोटर अपना वोट आम आदमी पार्टी को देने के लिए आगे आ रहे हैं। ये विश्लेषक इस बात से क्या अनजान हैं कि अंग्रेजी के इनकंबेंट शब्द का इस्तेमाल उनके लिए किया जाता है जो आधिकारिक हैं, कुर्सी पर हैं, सत्ता में हैं? जाहिर है कांग्रेस के लिए एंटी इनकंबेंसी टर्म का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
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सत्ता विरोधी वोटर कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी की ओर तभी रुख करेंगे जब उन्हें यकीन हो जाएगा कि उसके ऐसा करने से सत्ता बदलने वाली है। क्या बीजेपी को नुकसान पहुंचे बगैर गुजरात में सत्ता बदल जाएगी? ‘ज़मीनी हकीकत’ की हकीकत यहीं बेपर्द हो जाती है।
आम आदमी पार्टी ने जब से राजनीतिक रूप से बीजेपी वाली लाइन पकड़ी है तब से वह कांग्रेस के लिए कम खतरनाक हुई है। गुजरात में आम आदमी पार्टी उऩ्हीं इलाकों में मजबूती से खड़ी दिख रही है जो बीजेपी का मजबूत गढ़ है। उदाहरण के लिए सूरत जिले की 16 में 15 सीटें और अहमदाबाद जिले की 21 में से 15 सीटें बीजेपी के पास है। सूरत में नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपनी मजबूत उपस्थिति दिखलायी थी। समान रूप से विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी बीजेपी को ज्यादा नुकसान करती दिख रही है।
बीजेपी-कांग्रेस में ही है मुकाबलाः बीजेपी को मामूली नुकसान के साथ गैर बीजेपी वोटों को कांग्रेस और आप में बंटता दिखाया जा रहा है। यह ‘चतुराई’ बीजेपी को मजबूत दिखाने के लिए लगातार की जा रही है। जबकि क्षेत्रवार आम आदमी पार्टी की सक्रियता को देखें तो यह बीजेपी को अधिक नुकसान कर रही है। ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी 20 फीसदी वोट पाती है और बीजेपी को 13 फीसदी और कांग्रेस को 7 फीसदी का नुकसान हो तो बीते चुनाव के मुकाबले बीजेपी को 36 फीसदी और कांग्रेस को 34 फीसदी वोट मिलते दिखते हैं। तब विधानसभा त्रिशंकु होगी। लेकिन, ऐसी घोषणा कोई सर्वेयर या विश्लेषक नहीं कर रहा है।
अब जबकि चुनाव नजदीक आने के साथ-साथ यह स्पष्ट हो चुका है कि आम आदमी पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव में 10 फीसदी वोट भी शायद ही हासिल कर पाए तो मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस सीधे तौर दिख रहा है। ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस के बीच 6 प्रतिशत वोटों का अंतर कब बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दे, कोई नहीं कह सकता।
बीजेपी ने अगर कांग्रेस को मुख्य शत्रु माना है तो इसकी साफ वजह है कि उनके कार्यकर्ता भ्रमित ना हों। कहीं ऐसा न हों कि बीजेपी के कार्यकर्ता भी अपना मुकाबला आप से देखने लग जाएंगे। इसका खामियाजा भी बीजेपी को ही भुगतना पड़ेगा।
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बीजेपी चुनाव प्रचार में हिन्दुत्व के मुद्दे पर लौट रही है। वहीं कांग्रेस स्थानीय मुद्दों पर फोकस बनाए हुए है।
आम आदमी पार्टी सीधे नरेद्र मोदी पर हमला बोलकर वास्तव में लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी अधिक नजर आने लगी है। उसका फोकस दिल्ली में एमसीडी चुनाव अघिक हो गया है। इन सबका का मतलब यही है कि जिस कांग्रेस को कमजोर साबित करने में पूरा तंत्र लगा हुआ था, वही कांग्रेस अब बीजेपी को मुख्य स्पर्धी दिख रही है। इस बात को चाहे जिस तरीके से विश्लेषक या नेता स्वीकार करें- यह उनकी मर्जी है।
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