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न्याय को समर्पित नयी कांग्रेस के जन्म की प्रसव पीड़ा से घबराकर भागते एलीट नेता!

कुछ दिन पहले बीजेपी के तीन मौजूदा सांसदों ने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। हिसार के सांसद बृजेंद्र सिंह, चुरु के मौजूदा सांसद राहुलकास्वां और मुज़फ़्फ़रपुर के सांसद अजय निषाद ने कुछ दिन के अंतर में 'अबकी बार-चार सौ पार’ के पीएम मोदी के नारे को हास्यास्पद बताते हुए राहुल गाँधी को देश का भविष्य बता दिया। किसी भी मीडिया चैनल ने इस घटना को महत्व नहीं दिया लेकिन कांग्रेस के तीन नेताओं के दो दिन के अंदर पार्टी छोड़ने और दो के बीजेपी में जाने से गोदी मीडिया ही नहीं, कथित वैकल्पिक मीडिया में भी हाहाकार मचा हुआ है। जबकि इनमें कोई भी न सांसद था और न विधायक।

कांग्रेस से निष्कासित संजय निरुपम महाराष्ट्र में कांग्रेस की गठबंधन नीति से असंतुष्ट थे। जिस सीट पर उनकी निगाह थी, वह शिवसेना के खाते में चली गयी थी। वे किसी निजी महत्वाकांक्षा के शिकार नेता की तरह बाग़ी हो गये। मुक्केबाज़ विजेंद्र सिंह शाम को राहुल गाँधी ज़िंदाबाद का नारा लगा कर सोये और रात पता नहीं क्या सपना आया कि सुबह बीजेपी दफ़्तर की ओर रुख़ कर गये। इसमें सबसे दिलचस्प मामला कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ का है जिन्होंने सुबह कांग्रेस अध्यक्ष को इस्तीफ़ा देते हए पत्र लिखा और दोपहर को बीजेपी में शामिल हो गये। 

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कई प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ाने के बाद राजनीति में कूदे गौरव वल्लभ हमेशा याद दिलाते हैं कि वे कोई आम नेता नहीं वित्त (फ़ाइनेंस) के प्रोफ़ेसर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस्तीफ़ा देने के जो कारण बताये हैं वह किसी प्रोफ़ेसर का अपनी लिखी किताबों में आग लगा देने जैसा है। कोई भी प्रोफ़ेसर बहुत सोच-विचार कर कोई थीसिस तैयार करता है और फिर उस पर टिक कर बहस करता है। इस प्रक्रिया में वह अपने विषय या अकादमिक अनुशासन को समृद्ध करता है। कोई भी असली प्रोफ़ेसर किसी प्रलोभन में अपनी थीसिस से उलट बात नहीं करता, हाँ किसी नयी खोज या तथ्यों के आधार पर वह नयी थीसिस ज़रूर गढ़ता है।

प्रो.गौरव वल्लभ ने अपने द्वारा विकसित ‘थीसिस’ को हास्यास्पद रूप से उलट दिया। उन्होंने कहा कि वे राममंदिर के उद्घटान में शामिल न होने के पार्टी के फ़ैसले से क्षुब्ध हैं। साथ ही वे सनातन और देश को समृद्ध बनाने वाले पूँजीपतियों को गाली नहीं दे सकते, इसलिए कांग्रेस छोड़ रहे हैं। ये बीजेपी से मिली स्लेट पर स्वार्थ की खड़िया से लिखा गया बहाना है। राम मंदिर के उद्घाटन का बहिष्कार सनातन धर्म के शीर्ष पर बैठे सभी शंकराचार्यों ने किया था। उन्होंने उद्घाटन को शास्त्र विरुद्ध और राजनीतिक आयोजन बताया था। ये बात कल तक प्रो. गौरव वल्लभ ख़ुद तमाम टीवी डिबेट में कहते रहे हैं। सनातन धर्म को गाली देना न कांग्रेस की नीति है और न कोई कांग्रेस नेता ऐसा करता है। अगर उनका इशारा डीएमके की ओर है तो तमिलनाडु की विशिष्ट वैचारिकी और उसकी द्रविड़ राजनीतिक दृष्टि एक हक़ीक़त है। डीएमके अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को लंबे समय तक समर्थन देती रही है और सनातन को आर्य संस्कृति का पर्याय मानते उसकी भीषण आलोचना करने वाले पेरियार उस एआईएडीएमके के भी आदर्श रहे जिनके साथ हाल तक बीजेपी का गठबंधन रहा है और पर्दे के पीछे अभी भी गलबहियाँ जारी हैं। 

यही नहीं, प्रो. गौरव वल्लभ देश के आर्थिक हालात और अडानी-अंबानी के हित में देश के संसाधनों को लुटाने की नीति के आरोप को आँकड़ों के ज़रिए स्थापित करने में सबसे आगे थे। देश में बढ़ती असमानता और एक फ़ीसदी लोगों के हाथ में जीडीपी के चालीस फ़ीसदी संसाधनों के सिमट जाने की भयावहता को वे बड़ी प्रामाणिकता के साथ टीवी डिबेट में रखते रहे हैं। ज़ाहिर है, कल तक जिन्हें वे क्रोनी कैपिटलिज़्म का प्रतीक बताते थे, वे अचानक उन्हें देश के लिए समृद्धि जुटाने वाले लगने लगें तो यह सिर्फ़ बीजेपी की भाषा को ज़ुबान देना है।
लेकिन प्रो. गौरव वल्लभ ने इस पत्र में जिस तरह जाति जनगणना से असहमति जतायी है वह न सिर्फ़ उनके बल्कि कांग्रेस में बैठे तमाम एलीट नेताओं के असहज होने की चुग़ली कर रहा है।

कांग्रेस राहुल गाँधी के वैचारिक नेतृत्व में जिस तरह से अपना सामाजिक रूपांतरण करने में जुटी है वह सवर्ण पृष्ठभूमि से आने वाले विचारहीन नेताओं के लिए मुश्किल पैदा कर रहा है। वे हिंदुत्व और पूँजी के गठजोड़ पर दौड़ रही बीजेपी के साथ ज़्यादा सहज हैं। यह वैचारिक और सांस्कृतिक मामला है। ऐसे नेताओं का नयी कांग्रेस के उदय की स्थिति में अप्रासंगिक होना तय है।

कांग्रेस से तमाम एलीट नेताओं के नाराज़ होने या पार्टी छोड़ने के पीछे का सच यही है। ग़ौर से देखिए तो कांग्रेस पर अंदर से हमले करने वाले तमाम नेता एक ख़ास सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से आ रहे हैं। ऐसे नेताओं को पार्टी ने बहुत आसानी से बहुत कुछ दिया है। ख़ुद गौरव वल्लभ को पार्टी में आते ही राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया और 2019 में जमशेदपुर और 2023 में उदयपुर से विधानसभा चुनाव लड़ाया गया। वे दोनों चुनाव हार गये। स्थानीय कांग्रेस नेताओं में उन्हें पैराशूट की तरह उतारने को लेकर नाराज़गी भी जतायी लेकिन पार्टी अनुशासन को मानते हुए तन-मन-धन लगाकर गौरव वल्लभ को चुनाव लड़ाया। कांग्रेस आलाकमान ने शायद उनकी बौद्धिक प्रतिभा का सम्मान करते हुए ऐसा किया था। उसने यह नहीं सोचा कि प्रोफ़ेसर के आँकड़ों में उनकी आत्मा नहीं, विधानसभा या संसद पहुँचने का स्वार्थ है। 

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ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस के लिए विकट परिस्थितियों के बीच राहुल गाँधी एक ऐसे योद्धा की तरह मैदान में डटे हैं जो मानसिक रूप से अपराजेय है। जिसे न डराया जा सकता है और न ख़रीदा जा सकता है। लेकिन वे यह युद्ध निजी उपलब्धि पाने के लिए नहीं लड़ रहे हैं। राहुल गाँधी दरअसल, दलित, पिछड़े, आदिवासी, स्त्री और अल्पसंख्यकों के साथ न्याय का प्रश्नों पर केंद्रिेत एक ‘नयी कांग्रेस’ को जन्म देने में जुटे हुए हैं। इस प्रसव पीड़ा को बर्दाश्त कर पाना गौरव वल्लभ जैसे ‘वित्त’ के प्रोफ़ेसर के लिए मुश्किल ही होगा। उनके लिए बीजेपी का मंच बिल्कुल सही जगह है जो जाति जनगणना को रोककर सामाजिक परिवर्तन की राह में रोड़ा बनी हुई है। कांग्रेस की पाँच न्याय योजनाएँ राजनीति को नया मुहावरा दे रही हैं। राहुल गाँधी जानते हैं कि कांग्रेस का नयी भंगिमा और मुहावरे के साथ नयी उम्मीद की तरह भारतीय आकाश में चमकना ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी है। संविधान बचाने की यह लड़ाई अथक परिश्रम और क़ुर्बानी माँगती है। थके-हारे-डरे लोगों का इस राह से अलग हो जाना स्वाभाविक ही है।

पुनश्च: गौतम बुद्ध ने कहा था कि ‘वैर को वैर से ख़त्म नहीं किया जा सकता। वैर को अवैर से ही ख़त्म किया जा सकता है। यही सनातन धम्म है।’ इस तर्क से देखें तो राहुल गाँधी इस समय देश के सबसे बड़े सनातनी नेता हैं जो नफ़रत के बाज़ार में मुहब्बत की दुकान खोलने का आह्वान कर रहे हैं! 

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पंकज श्रीवास्तव
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