loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
56
एनडीए
24
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
233
एमवीए
49
अन्य
6

चुनाव में दिग्गज

कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय

पीछे

हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट

आगे

मोदी स्टेडियम: नामकरण ही नहीं, पीछे के इरादे समझें!

तीन महीने पहले प्रारम्भ हुए किसान आंदोलन के बाद से नागरिकों के स्तर पर भी ढेर सारे सवाल जुड़ गए हैं और लड़ाई के मुद्दे व्यापक हो गए हैं। इन सवालों में अधिकांश का सम्बन्ध देश में बढ़ते हुए एकतंत्रवाद के ख़तरे और लोकतंत्र के भविष्य से है।
श्रवण गर्ग

सरकार अगर अचानक घोषणा कर दे कि परिस्थितियाँ अनुकूल होने तक अथवा किन्हीं अन्य कारणों से विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापस लिया जा रहा है और कृषि क्षेत्र के सम्बन्ध में सारी व्यवस्थाएँ पहले की तरह ही जारी रहेंगी तो आंदोलनकारी किसान और उनके संगठन आगे क्या करेंगे? महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर जमे हज़ारों किसान और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाक़ों में महापंचायतें आयोजित कर रहे आन्दोलनकारी जाट क्या सरकार की जय-जयकार करते हुए अपने ट्रैक्टरों के साथ घरों को लौट जाएँगे या फिर कुछ और भी हो सकता है?

राकेश टिकैत ने तो किसानों से अपने ट्रैक्टरों में ईंधन भरवाकर तैयार रहने को कहा है। उन्होंने 40 लाख ट्रैक्टरों के साथ दिल्ली में प्रवेश कर संसद को घेरने की धमकी दी है।

ख़ास ख़बरें

साफ़ होना बाक़ी है कि क्या बदलती हुई परिस्थितियों में भी किसान नेताओं का एजेंडा कृषि क़ानूनों तक ही सीमित है या कुछ आगे बढ़ गया है?

एजेंडा आगे बढ़ा?

अहमदाबाद में नए सिरे से निर्मित और श्रृंगारित दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम का नाम उद्घाटन के अंतिम क्षणों तक रहस्यमय गोपनीयता बरतते हुए बदलकर एक ऐसी शख़्सियत के नाम पर कर दिया गया जो राजनीतिक संयोग के कारण इस समय देश के प्रधानमंत्री हैं।

इसी तरह के संयोगों के चलते और भी लोग पूर्व में समय-समय पर प्रधानमंत्री रह चुके हैं पर उनके पद पर बने रहते हुए ऐसा नामकरण पहले कभी नहीं हुआ होगा। स्टेडियम के दो छोरों में एक ‘अंबानी एंड’ और दूसरा ‘अडानी एंड ‘कर दिया गया है। 

ज़ाहिर है प्रधानमंत्री के नाम वाले इस राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में भविष्य के सारे खेल अब इन दो छोरों के बीच ही खेले जाने वाले हैं। कृषि क़ानून इन खेलों का सिर्फ़ एक छोटा सा हिस्सा भर है। प्रधानमंत्री ने साफ़ भी कर दिया है कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। 

farmers protest over farm laws may end, reasons for naming narendra modi stadium - Satya Hindi
अहमदाबाद स्थित नरेंद्र मोदी स्टेडियम
एक-एक करके जब सभी मूलभूत नागरिक ज़रूरतों और सुविधाओं को निजी हाथों में सौंपा जा रहा है, किसी उचित अवसर पर शायद यह भी स्पष्ट कर दिया जाएगा कि सरकार और संसद के ज़िम्मे अंतिम रूप से क्या काम बचने वाले हैं। और जब ज़्यादा काम ही करने को नहीं बचेंगे तो फिर लगभग दोगुनी क्षमतावाला नया संसद भवन बनाने की भी क्या ज़रूरत है?
इसमें कोई दो मत नहीं कि किसान-आंदोलन के कारण अभी तक सुन्न पड़े विपक्ष में कुछ जान आ गई है और उसने सरकार के प्रति डर को न सिर्फ़ कम कर दिया है, राजनीति भी हिंदू-मुसलिम के एजेंडे से बाहर आ गई है।

विपक्ष में जान!

इसे कोई ईश्वरीय चमत्कार नहीं माना जा सकता कि गोमांस और पशुओं की तस्करी आदि को लेकर आए-दिन होनेवाली घटनाएँ और हत्याएँ इस वक्त लगभग शून्य हो गई हैं। ऐसा कोई नैतिक पुनरुत्थान भी नहीं हुआ है कि मॉब-लिंचिंग आदि भी बंद है।

स्पष्ट है कि या तो पहले जो कुछ भी चल रहा था वह स्वाभाविक नहीं था या फिर अभी की स्थिति अस्थाई विराम है। यह बात अभी विपक्ष की समझ से परे है कि किसी एक बिंदु पर पहुँचकर अगर किसान आंदोलन किन्हीं भी कारणों से ख़त्म हो जाता है तो जो राजनीतिक शून्य उत्पन्न होगा उसे कौन और कैसे भरेगा।

किसान राजनीतिक दलों की तरह पूर्णकालिक कार्यकर्ता तो नहीं ही हो सकते। और यह भी जग-ज़ाहिर है कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन को विपक्षी दलों का तो समर्थन प्राप्त है, किसानों का समर्थन किस दल के साथ है यह बिलकुल साफ़ नहीं है। टिकैत ने भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को सार्वजनिक तौर पर उजागर नहीं किया है।

farmers protest over farm laws may end, reasons for naming narendra modi stadium - Satya Hindi

तीन महीने पहले प्रारम्भ हुए किसान आंदोलन के बाद से नागरिकों के स्तर पर भी ढेर सारे सवाल जुड़ गए हैं और लड़ाई के मुद्दे व्यापक हो गए हैं। इन सवालों में अधिकांश का सम्बन्ध देश में बढ़ते हुए एकतंत्रवाद के ख़तरे और लोकतंत्र के भविष्य से है।

अहमदाबाद के क्रिकेट स्टेडियम में 24 फ़रवरी को जो कुछ भी हुआ वह केवल एक औपचारिक नामकरण संस्कार का आयोजन भर नहीं था जिसे कि राष्ट्र के प्रथम नागरिक की प्रतिष्ठित उपस्थिति में सम्पन्न करवाया गया।

 जो हुआ है वह देश की आगे की ‘दिशा’ का संकेत है, जिसमें यह भी शामिल हो सकता है कि नए स्टेडियम के नाम के साथ और भी कई चीजों के बदले जाने की शुरुआत की जा रही है।

सिर्फ नाम नहीं बदला है

यानी काफ़ी कुछ बदला जाना अभी बाक़ी है और नागरिकों को उसकी तैयारी रखनी चाहिए। केवल सड़कों, इमारतों, शहरों और स्टेडियम आदि के नाम बदल दिए जाने भर से ही काम पूरा हो गया है ऐसा नहीं समझ लिया जाए। सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर जारी किए गए ताज़ा कड़े निर्देशों को भी इसी बदलाव की ज़रूरतों में शामिल किया जा सकता है। सरकारों के लिए परिवर्तन एक निरंतर चलने वाली प्रकिया है। इस प्रक्रिया के पूरा करने की कोशिश में कई बार व्यक्ति को ही राष्ट्र बन जाना पड़ता है।

स्टेडियम का नया नाम भी उसी ज़रूरत का एक हिस्सा हो सकता है। व्यक्तिवादी व्यवस्थाओं का काम उन स्थितियों में और भी आसान हो जाता है जब बहुसंख्यक नागरिक अपनी जाने बचाने के लिए टीके का इंतज़ाम करने में जुटे हुए हों या किसी दीर्घकालिक योजना के तहत जोत दिए गए हों ।

इससे पहले कि देखते ही देखते सब कुछ योजनाबद्ध और आक्रामक तरीक़े से बदल दिया जाए, आवश्यकता इस बात की है कि या तो किसान अपने शांतिपूर्ण आंदोलन में विपक्ष को भी सम्मानपूर्ण जगह देकर सार्वजनिक तौर पर भागीदार बनाएँ या फिर वे स्वयं ही एक सशक्त और आक्रामक विपक्ष की भूमिका अदा करें। आंदोलन समाप्त हो सकते हैं पर लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए एक प्रभावशाली विपक्ष की स्थायी उपस्थिति ज़रूरी है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें