दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को अब कहाँ के लिए किस रूट पर आगे चलना चाहिए? छह महीने के राशन-पानी और चलित चौके-चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं, क्या ऐसा मान लिया जाए? लगभग टूटे हुए मनोबल और अनसोची हिंसा के अपराध-भाव से ग्रसित किसानों के पैर क्या अब एक फ़रवरी को संसद की तरफ़ उत्साह के साथ बढ़ पाएँगे? या बढ़ने दिए जाएँगे?
इस आंदोलन का ‘महात्मा गांधी’ कौन है?
- विचार
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- 27 Jan, 2021

किसान आंदोलन को तय करना होगा कि उसकी अगली ‘यात्रा’ में कितने और कौन लोग मार्च करने वाले हैं! उनका नेतृत्व और उन्हें चुनने का काम कौन करने वाला है? गांधी चाहते तो उनके दांडी मार्च में केवल 80 के बजाय 80 हज़ार लोग भी हो सकते थे। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
जैसी कि आशंका थी, चीजें दिल्ली की फेरी लगाकर वापस सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पहुँच गई हैं। सरकार के लिए ऐसा होना ज़रूरी भी हो गया था। दोनों पक्षों के बीच बातचीत की तारीख़ अब अदालत की तारीख़ों में बदल सकती है।
तो आगे क्या होने वाला है? सरकार ऊपरी तौर पर सफल होती हुई ‘दिख’ रही है। पर यह ‘दृष्टि-भ्रम’ भी हो सकता है। किसान असफल होते ‘नज़र’ आ रहे हैं। यह भी एक ‘तात्कालिक भ्रांति’ हो सकती है। असली हालात दोनों ही स्थितियों के बीच कहीं ठहरे हुए हैं।