बीस जनवरी, मंगलवार की रात लगभग सवा दस बजे जब भारत के नागरिक सोने की तैयारी कर रहे थे, वाशिंगटन में दिन के पौने बारह बज रहे थे। यही वह क्षण था जिसकी अमेरिका के करोड़ों नागरिक रात भर प्रतीक्षा कर रहे थे। उस कैपिटल हिल पर जहाँ सिर्फ़ दो सप्ताह पहले (6 जनवरी) अमेरिकी इतिहास की अभूतपूर्व हिंसा घट चुकी थी, 78 साल के जो बाइडन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद देशवासियों को सम्बोधित कर रहे थे।
वे डोनल्ड ट्रंप की जगह ले रहे थे जो सोमवार की रात ‘किसी न किसी रूप में’ अपनी वापसी का इशारा करते हुए वाशिंगटन से रवाना हो चुके थे। उन्हें विदा देने के लिए उनके उप-राष्ट्रपति पेंस भी मौजूद नहीं थे। पेंस, बाइडन-हैरिस के शपथ समारोह में उपस्थित थे।
सूनी सड़कें
बाइडन (और कमला हैरिस) के शपथ समारोह में दोनों ही दलों के पूर्व राष्ट्रपति (क्लिंटन, बुश और ओबामा) मौजूद थे पर ट्रंप नहीं थे। पर ट्रंप का ख़ौफ़ कैपिटल के हर कोने और समारोह में उपस्थित प्रत्येक चेहरे पर मौजूद था। इसकी गवाही वाशिंगटन डीसी की सूनी सड़कें और समारोह स्थल को घेर कर खड़े हज़ारों सुरक्षा गार्ड दे रहे थे। अमेरिकी इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था।
अमेरिका ने अपने आपको इतना असुरक्षित पहले कभी नहीं महसूस किया होगा, ‘नाइन-इलेवन’ की घटना के बाद भी। तब अमेरिका पर हमला बाहरी लोगों ने किया था। इस बार हमला भी घरेलू था और लोग भी जाने-पहचाने थे। बाइडन के शब्दों में वह एक ‘असभ्य युद्ध’ (अन-सिविल वार) था।
नई चुनौतियाँ
अपने पहले संबोधन में बाइडन ने देश के साथ उन सभी चुनौतियों की बात की जो एक तानाशाह राष्ट्रपति उनके निपटने के लिए छोड़ गया है। ट्रंप ने जब चार साल पहले शपथ ली थी, तब इसी जगह से देशवासियों को बताया था कि “हमने दूसरे राष्ट्रों को धनवान बनाया पर हमारी अपनी सम्पदा, ताक़त और आत्मविश्वास क्षितिज पर गुम हो गया।” उन्होंने देश को यक़ीन दिलाया था कि 20 जनवरी 2017 को याद रखा जाएगा कि इस दिन नागरिक अमेरिका के फिर से शासक हो गए।
बाइडन ने 20 जनवरी 2021 को बताया कि पिछले चार सालों में देश कहाँ पहुँच गया है। कोरोना के कारण हो चुकी चार लाख से ज़्यादा मौतें, करोड़ों लोगों (लगभग तीन करोड़) की बेरोज़गारी, श्वेत उग्रवाद, हिंसा का माहौल और इन सब के बीच नागरिकों की नई सरकार से उम्मीदें।
बाइडन ने 20 जनवरी 2021 को बताया कि पिछले चार सालों में देश कहाँ पहुँच गया है। कोरोना के कारण हो चुकी चार लाख से ज़्यादा मौतें, करोड़ों लोगों (लगभग तीन करोड़) की बेरोज़गारी, श्वेत उग्रवाद, हिंसा का माहौल और इन सब के बीच नागरिकों की नई सरकार से उम्मीदें।
20 जनवरी 2021 को वाशिंगटन में सत्ता का केवल शांतिपूर्ण तरीक़े से हस्तांतरण हुआ है, नागरिक-अशांति की आशंकाएँ न सिर्फ़ निरस्त नहीं हुईं हैं और पुख़्ता हो गईं हैं। देश की जनता का एक बड़ा बड़ा प्रतिशत अभी भी ट्रंप का कट्टर समर्थक है।
सवर्ण राष्ट्रवादी
इनमें बहुसंख्या उन सवर्ण राष्ट्रवादी गोरों की है जो सभी तरह के अल्पसंख्यकों को अपनी समृद्धि का दुश्मन मानते हैं। हालाँकि अपनी कैबिनेट में इन्हीं अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण स्थान देकर बाइडन ने घरेलू आतंकियों को संदेश देने की हिम्मत की है कि वे सवर्ण हिंसा को परास्त करके रहेंगे पर कहा नहीं जा सकता कि अपनी स्वयं और कमला हैरिस की वामपंथी छवि के चलते कितने सफल हो पाएँगे।
रिपब्लिकन पार्टी के सांसद भी इन ट्रंप समर्थकों से ख़ौफ़ खाते हैं। वे जानते हैं कि अब ट्रंप ही पार्टी हैं और पार्टी ही ट्रंप है। वे पूर्व राष्ट्रपति का साथ छोड़ने को इसलिए तैयार नहीं हैं कि उनका राजनीतिक भविष्य अब ट्रंप के समर्थन की कठपुतली बन गया है।
हार के बाद ज़्यादा ताक़तवर ट्रंप
चुनावी नतीजों पर मोहर लगाने को कैपिटल पर 6 जनवरी को हुई सांसद की संयुक्त बैठक में कुछ ट्रंप समर्थक सांसदों ने यह साफ़ भी कर दिया। ट्रंप की कांग्रेस में ताक़त को लेकर और ज़्यादा स्पष्टता अब महाभियोग प्रस्ताव पर होने वाली सीनेट की बहस में हो जाएगी। आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए अगर चुनावी हार के बाद ट्रंप ज़्यादा ताकतवर हो गए हों।
बाइडन ने अपने शपथ भाषण में देशवासियों से एक होकर चुनौतियों का सामना करने और ‘अमेरिका महान’ के सपने को साकार करने की अपील की है पर ख़तरे कहीं ज़्यादा बड़े हैं और नव-निर्वाचित राष्ट्रपति इसे जानते हैं।
आंतरिक विद्रोहियों के साथ-साथ बाहरी अधिनायकवादी ताकतें भी नई सरकार को अस्थिर करने में लगी रहेंगी। इसके सारे बीज तो वाशिंगटन छोड़ने के पहले ही ट्रंप और उनके विदेश सचिव ने बो दिए थे।
आंतरिक विद्रोहियों के साथ-साथ बाहरी अधिनायकवादी ताकतें भी नई सरकार को अस्थिर करने में लगी रहेंगी। इसके सारे बीज तो वाशिंगटन छोड़ने के पहले ही ट्रंप और उनके विदेश सचिव ने बो दिए थे।
ये बाहरी ताकते वे हैं जो न सिर्फ़ प्रजातंत्र और मनवाधिकारों की विरोधी हैं, कोरोना के कारण उत्पन्न हुए संकटकाल का फ़ायदा उठाकर अपनी एकदलीय शासन व्यवस्था को और मज़बूत करना चाहती हैं।
राहत की सांस
बाइडन के सत्ता में क़ाबिज़ हो जाने के बाद पश्चिमी यूरोप सहित उन कई देशों के नागरिकों ने राहत की साँस ली है जो ट्रंप की दूसरी बार जीत को प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए एक बड़ा ख़तरा मानते थे। पर वे यह भी जानते हैं कि ख़तरा स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं हुआ है। एक तात्कालिक ‘राहत’ को स्थायी ‘उपलब्धि’ में परिवर्तित होते देखने के लिए उन्हें चार वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जो काफ़ी लम्बा समय होता है।
बाइडन जब कह रहे थे कि प्रत्येक असहमति को सम्पूर्ण युद्ध का कारण नहीं बनाया जा सकता तब कैपिटल के शपथ मंच पर उन्हें सुनने के लिए ट्रंप उसे तरह से मौजूद नहीं थे जिस तरह ओबामा 20 जनवरी 2017 को सत्ता हस्तांतरण के वक्त पूर्व राष्ट्रपति (ट्रंप ) को अपने ख़िलाफ़ बोलते हुए चुपचाप सुन रहे थे। बाइडन डेमोक्रेट ज़रूर हैं, पर ओबामा नहीं हैं।
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