कृषि सुधार क़ानून आए और चले गए। लेकिन किसानों की चिंता का मुख्य मुद्दा जहाँ था वहीं है। बीज, खाद, कीटनाशक, बिजली, पानी और मज़दूरी की बढ़ती दरों की वजह से खेती की लागत लगातार बढ़ रही है और किसानों की आमदमी घट रही है। इसलिए किसान अपनी उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्यों की क़ानूनी गारंटी चाहते हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्यों की वर्तमान व्यवस्था एक तो, सब उपजों पर और सब राज्यों में लागू नहीं है और दूसरे, सरकारों की इच्छा पर निर्भर है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के किसानों को इस व्यवस्था से ख़ूब फ़ायदा हुआ है। पर बिहार जैसे राज्यों में न इसके होते हुए लाभ मिल रहा था और न ही इसके हटाए जाने से कोई लाभ हुआ है।
संतुलित विकास के लिए चाहिए एक नई कृषि क्रांति
- विचार
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- 26 Nov, 2021

न्यूनतम समर्थन मूल्यों की गारंटी का मामला कृषि उपज के उत्पादकों और उपभोक्ताओं की ज़रूरतों के बीच संतुलन और सामंजस्य बिठाने पर भी आधारित है। सरकार को किसानों की आय-सुरक्षा के साथ-साथ कृषि उपज के उपभोक्ताओं की आमराय और सहमति भी जुटानी होगी।
इसकी एक मुख्य वजह शायद बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों के खेतों या जोतों का बहुत छोटा होना है।