पिछले साल कृषि क्षेत्र में लाए गए तीन क़ानूनों के निरस्तीकरण और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की वैधानिक गारंटी की दो मूल मांगों को लेकर किसानों का एक व्यापक और अभूतपूर्व आंदोलन देशभर में चल रहा है। संविधान दिवस 26 नवंबर के अवसर पर इस आंदोलन का एक साल पूरा हो गया। जब किसान तमाम विषम परिस्थितियों को सहते हुए भी पीछे नहीं हटे तो अन्ततः मोदी सरकार ने 19 नवंबर को इन तीन क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी।
'एमएसपी की गारंटी के बगैर ख़त्म नहीं होगा किसान आंदोलन'
- विचार
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- 26 Nov, 2021

किसान यह मांग क्यों कर रहे हैं कि निजी व्यापारी भी एमएसपी पर ही फ़सलें खरीदें? क्या इसका मतलब यह है कि सारी फ़सलें सरकार ही खरीदे?
परन्तु किसान मोर्चे ने अपनी अन्य मांगों को लेकर आंदोलन को और तेज़ करने का निर्णय लिया है। किसानों की मांग है कि घोषित एमएसपी से नीचे फ़सलों की खरीद क़ानूनी रूप से वर्जित हो, यानी कोई भी व्यक्ति, व्यापारी या संस्था जब फ़सलों का क्रय करे तो एमएसपी वैधानिक रूप से 'आरक्षित मूल्य' हो जिससे कम मूल्य पर कोई खरीद ना हो। एमएसपी का निर्धारण भी कृषि लागत मूल्य आयोग की C2 लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर होना चाहिए जैसा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश थी और बीजेपी का वायदा था। एमएसपी की गारंटी की यह मांग किसानों, विशेषकर, छोटे किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मांग के गणित को समझना बहुत आवश्यक है।