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डोनाल्ड ट्रंप ने थर्ड जेंडर को क्यों ख़त्म किया?

ये सारी बातें अपनी जगह ठीक हैं लेकिन क्या यह मुद्दा इतना बड़ा था कि ट्रंप ने सब कुछ पीछे छोड़कर इसी पर सबसे पहले फ़ैसला लिया? उस समय भी जब कुछ ऐसे फ़ैसले उन्होंने टाल दिए जो अमेरिका की आर्थिक सेहत पर बड़ा असर डाल सकते थे। कम से कम चुनाव अभियान के दौरान कुछ मुद्दों को लेकर दावे तो ऐसे ही किए गए थे। लेकिन उनके मुक़ाबले प्राथमिकता थर्ड जेंडर को मिली। अमेरिका में थर्ड जेंडर को आधिकारिक पहचान दिलाने का संघर्ष 1950 के दशक के पहले से ही चल रहा है। तब से यह इस देश के जेंडर विमर्श का एक प्रमुख हिस्सा रहा है। वहाँ यह नागरिक और मानव अधिकार का भी एक मुद्दा रहा है। इसके पीछे का तर्क यह रहा है कि अगर कोई स्थापित मान्यताओं से अलग अपनी पहचान को किसी दूसरे तरीक़े से व्यक्त करना चाहता है तो उसे इसका अधिकार दिया जाना चाहिए।
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हालाँकि, यह अधिकार पाना इतना आसान नहीं था और इसमें काफी वक़्त भी लगा। बराक ओबामा के कार्यकाल में इसके लिए रास्ता तैयार हो गया था। ओबामा की सरकार ने जिसे थर्ड जेंडर कहा जाता है उनके लिए कुछ बजटीय प्रावधान भी कर दिए थे। हालाँकि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में इनमें से ज़्यादातर प्रावधान ख़त्म कर दिए।
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इसके बाद जब जो बाइडेन राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस बाबत कई बड़े बदलाव किए। 2021 से अमेरिका के लोगों को यह अधिकार मिला कि वे थर्ड जेंडर को अपनी आधिकारिक पहचान के रूप में लिख सकते हैं। यहाँ तक कि यह पहचान बच्चों के स्कूलों तक में दर्ज की जा सकती है। लेकिन इस दौर में सबसे बड़ा बदलाव अमेरिकी पासपोर्ट में किया गया जहां स्त्री और पुरुष के अलावा एक तीसरा विकल्प दिया गया थर्ड जेंडर का। इसके लिए वहां पासपोर्ट पर लिखा जाने लगा - एक्स।
ट्रंप के एक्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर ने इन लोगों से सिर्फ़ यह पहचान छीनी ही नहीं है, उन्हें सरकारी दस्तावेजों से भी ख़त्म कर दिया है।

अमेरिका में एक ऐसा बहुत बड़ा वोटर वर्ग तैयार हो चुका है जो यह मानता है कि अतीत में सरकारों द्वारा उठाए गए प्रगतिशील क़दम ही बहुत सारी समस्याओं की जड़ हैं। यह पूरा का पूरा वर्ग ट्रंप के साथ है। उसके लिए लोकतंत्र, उदारवाद, मानव अधिकार जैसे मूल्यों का बहुत अर्थ नहीं है, और यह वर्ग अमेरिका को उस दौर में वापस ले जाना चाहता है जब ये सारी चीजें नहीं थीं। ट्रंप ने अपने इस फ़ैसले से दरअसल इन्हीं लोगों को संतुष्ट करने की कोशिश की है।

हम चाहें तो इसे इस तरह से भी देख सकते हैं कि दूसरे ट्रंप काल में अमेरिका को पीछे ले जाने का काम शुरू हो गया है। वैसे इसे स्वर्ण काल की वापसी भी कहा जा रहा है।

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हरजिंदर
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