बहुत समय बाद ऐसा हो रहा है कि केंद्रीय बजट का बड़े स्तर पर इंतज़ार किया जा रहा है। कॉर्पोरेट और उद्योग क्षेत्र तो हर साल ही बजट का बेसब्री से इंतज़ार करता था। बजट से काफी पहले विभिन्न उद्योग संगठन वित्तमंत्री के सामने बजट में राहत रियायत पाने की अपनी उम्मीदें पेश कर देते थे। वे इंतज़ार करते थे कि इनमें से कितनों को वित्तमंत्री ने माना और कितनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
लेकिन आम लोगों ने बजट से उम्मीद बांधना काफी समय से बंद कर दिया था। इसकी एक वजह यह है कि कौन-सा सामान कितना मंहगा हुआ या सस्ता अब यह ज़्यादातर जीएसटी से तय होता है, बजट से नहीं। दूसरे यह कि 2014 के बाद से बजट में सरकार ने मध्य वर्ग के लिए राहत या रियायत से मुँह मोड़ लिया है। कुछ समय पहले आयकर दरों में जो रियायत दी भी गई तो न्यू टैक्स रिजीम और ओल्ड टैक्स रिजीम में बांटकर उलझन भर बना दिया गया। जो लोग पहले की तरह होम लोन या बीमा वगैरह के लिए टैक्स में रियायत ले रहे थे उन्हें ओल्ड टैक्स रिजीम में डाल दिया गया और उन्हें कोई रियायत नहीं दी गई।
पिछले साल बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कहा था कि अगली बार से प्रत्यक्ष करों का पूरा ढाँचा बदल दिया जाएगा। इसी से यह अटकल लगाई गई थी कि सरकार प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डायरेक्ट टैक्स कोड या डीटीसी ला सकती है। मनमोहन सिंह सरकार के समय इसकी काफी चर्चा थी लेकिन मोदी सरकार ने सारा ध्यान जीएसटी पर दिया और डीटीसी को भुला दिया गया। जीएसटी को जिस तरह से लागू किया गया था उसने अर्थव्यवस्था और आम लोगों के लिए नई मुसीबतें खड़ी की थीं। क्या डीटीसी भी ऐसी ही परेशानियाँ लेकर आएगा या उसमें लोगों के लिए कुछ राहत की ख़बर होगी?
एक तरफ़ सरकार ने मध्यवर्ग के लिए कुछ नहीं किया तो दूसरी तरफ़ इस दौरान कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिए इस दौरान राहतों के ढेर लगा दिए गए। 2019 में सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स को 30 फ़ीसदी से घटाकर 22 फ़ीसदी कर दिया था। अगर आप की निजी आय 15 लाख रुपये सालाना है तो आपको 30 फ़ीसदी की दर से आयकर देना पड़ता है, लेकिन करोड़ों-अरबों रुपये कमाने वाली कंपनियों को अधिकतम 22 फ़ीसदी ही कर देना पड़ता है।
इसका देश के खजाने पर साफ़-साफ़ नुक़सान भी हुआ। कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की वजह से 2019 से 2021 के बीच दो साल में सरकार को 1.84 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। 2019-20 में इसकी वजह से कुल कॉर्पोरेट टैक्स में 16 फ़ीसदी की कमी आई।
जब यह कटौती की गई थी तो इससे काफी उम्मीदें बंधाई गई थीं। कहा गया था कि इससे निवेश बढ़ेगा। तमाम आंकड़ें बता रहे हैं कि इस समय नया निवेश बहुत कम हो रहा है। एक यह भी उम्मीद जताई गई थी कि टैक्स में राहत से कंपनी क्षेत्र का जो धन बचेगा उसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल वे कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ाने में करेंगे। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन यह सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि कंपनियों का मुनाफा जिस दर से बढ़ा है कर्मचारियों के वेतन में उतनी बढ़ोत्तरी नहीं हुई। तमाम दूसरे अध्ययन भी यही बता रहे हैं कि कंपनी क्षेत्र में कर्मचारियों का वेतन काफी समय से लगभग स्थिर बना हुआ है। कई जगह तो उनकी वेतन वृद्धि मुद्रास्फीति की दर से भी कम है।
इस सबका नतीजा यह है कि बाज़ार में मांग बहुत तेजी से घटी है। तकरीबन सभी एफ़एमसीजी कंपनियाँ यही बात कह रही हैं। यहां तक कि कारों और दुपहिया वाहनों की मांग कम हो गई है। यह भी कहा जाने लगा है कि भारत का मध्य वर्ग सिकुड़ रहा है।
बाजार में मांग कम होने का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ रहा है, इसे हम घटती विकास दर से भी समझ सकते हैं। मांग कम होने के बाद से अब कॉर्पोरेट सेक्टर भी सरकार से यही कह रहा है कि मध्यवर्ग को इस बार आयकर की दरों में राहत दी जाए। ताकि उसके पास कुछ अतिरिक्त धन आए जिससे वह बाजार में खरीदारी करने निकले और वहां मांग पैदा हो। क्या सरकार इस बार बजट में उद्योग जगत की यह बात मानेगी?
प्रत्यक्ष कर हो या अप्रत्यक्ष कर, सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा इसी मध्य वर्ग की जेब से आता है। आबादी के इस छोटे से हिस्से पर ही करों का बोझ लादा जाता रहा है। अक्सर ख़तरा यह भी रहता है कि एक जगह की राहत किसी दूसरे जगह के बोझ में न बदल जाए।
फ़िलहाल आयकर में राहत की उम्मीद इस बार इसलिए भी की जा रही है कि संसद में बजट पेश होने के चार दिन बाद ही दिल्ली में विधानसभा के लिए मतदान होगा।
करों में राहत देकर सरकार दिल्ली के एक बहुत बड़े वोटर वर्ग को प्रभावित कर सकती है। दूसरे राज्यों की तुलना में दिल्ली में मध्यवर्ग की आबादी का प्रतिशत सबसे ज़्यादा है। अभी कुछ ही दिन पहले सरकार ने जब आठवें वेतन आयोग की घोषणा की थी तो भी यही माना गया था कि ऐसा दिल्ली चुनाव को प्रभावित करने के नज़रिये से किया गया है। वरना इस सरकार ने इसके पहले के वेतन आयोग की सिफारिशों को काफी समय तक टाला था और यह भी कहा जाने लगा था कि अब सरकार वेतन आयोग नहीं बनाएगी।
मामला चाहे दिल्ली चुनाव का हो या कंपनी क्षेत्र की मांग का, मध्य वर्ग इस बार के बजट का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है।
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