देश में कोरोना वैक्सीन अगले महीने से लगनी शुरू होनी है। लेकिन इससे पहले ही इस पर फ़तवे की तलवार लटक गई है। मुसलिम धर्म गुरुओं नें कोरोना वैक्सीन के हलाल या हराम होने को लेकर बहस छेड़ दी है। इससे मुसलिम समाज में इसे लगवाने या नहीं लगवाने का असमंजस पैदा हो गया है। मुसलिम समाज इसे लेकर पोलियो ड्राप्स की तरह दो ख़ेमों में बँटता नज़र आ रहा है।
कोरोना वैक्सीन पर क्यों लटकी फ़तवे की तलवार?
- विचार
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- 25 Dec, 2020

पोलिया ड्रॉप के मामले में देखा गया है कि मुसलिम समाज के बड़े तबक़े ने अपने बच्चों को दवाई नहीं पिलाई। इस बारे में अफवाह फैलाई गई कि यह मुसलिम बच्चों की प्रजनन क्षमता को ख़त्म करने की साज़िश है। नतीजा यह रहा है कि अब जब भी कहीं पोलियो के मामले सामने आते हैं तो उनमें 99 फ़ीसदी बच्चे मुसलमान होते हैं। कोरोना वैक्सीन पर फ़तवे की तलवार लटका कर समाज के बड़े तबक़े को इससे दूर करने की साज़िश है।
कोरोना वैक्सीन पर बहस की शुरुआत आए दिन बात-बात पर फ़तवा देने के लिए बदनाम हो चुकी मुंबई की रज़ा अकादमी ने की है। अकादमी से जुड़े मौलाना सईद नूरी ने कहा कि पहले वह चेक करेंगे कि वैक्सीन हलाल है या नहीं। उनकी मंजूरी के बाद ही मुसलमान इस दवा को लगवाने के लिए आगे आएँ। मौलाना सईद नूरी ने अपने वीडियो बयान में कहा है, ‘भारत सरकार से हमारी गुज़ारिश है कि वो चीन में बनी कोरोना वैक्सीन न मँगाए क्योंकि इसमें सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। किसी दूसरे देश में बनी वैक्सीन या अपने देश में बनी वैक्सीन के कंटेंट भी हमारे उलेमा किराम को दिखाए जाएँ ताकि हम भी आश्वस्त होकर यह ऐलान कर सकें कि इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।’