ग़ाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाली रफ़त परवीन के परिवार वालों ने उसके ब्रेन डेड होने पर उसके अंग दान करके चार लोगों की ज़िंदगी बचा कर एक मिसाल क़ायम की है। उनके इस जज़्बे की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। रफ़त की परिवार वालों के इस क़दम की ख़ूब तारीफ़ हो रही है। होनी भी चाहिए। क्योंकि उनका क़दम साहसिक होने के साथ ऐतिहासिक भी है।
रफ़त का अंगदान फतवेबाजों के मुंह पर तमाचा!
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- 28 Dec, 2020

ग़ाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में रहने वाली रफ़त परवीन के परिवार वालों ने उसके ब्रेन डेड होने पर उसके अंग दान करके चार लोगों की ज़िंदगी बचा कर एक मिसाल क़ायम की है। उनके इस जज़्बे की जितनी तारीफ़ की जाए कम है।
क्या है मामला?
रफ़त परवीन गुजरे 19 दिसंबर को सिर दर्द और चक्कर आने की शिकायत के बाद एक निजी अस्पताल में भर्ती हुई थीं। 24 दिसंबर को उन्हें ब्रेनडेड घोषित कर दिया गया। डॉक्टरों ने उनके परिवार वालों को अंगदान के बारे में बताया और उन्हें इसके लिए प्रेरित किया। परिवार वाले राज़ी हो गए। इस तरह रफ़त के दान दिए गए अंगों से दो लोगों को किडनी, एक को दिल और एक को लिवर ट्रांसप्लांट के ज़रिए ज़िंदगी मिल गई।
साहसिक और ऐतिहासिक क़दम
दरअसल रफ़त के परिवार वालों का का यह क़दम मुसलमानों में शरीयत के नाम पर कूट-कूट कर भर दी गई इस जहालत के ख़िलाफ़ बग़ावत है कि इसलाम में अंगदान हराम है। इसके पहले अंगदान करने वाले कई लोगों के ख़िलाफ़ मुफ़्ती, उलेमा और मुसलिम संस्थाओं ने फ़तवा जारी करके उनके इस क़दम को हराम करार दिया। उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया। उन्हें इसलाम से ख़ारिज तक बता दिया गया। ऐसे फ़तवों की वजह से मुसलिम समाज में अंगदान को लेकर लोग आगे नहीं आते थे।
मां-बाप, भाई-बहन या भाई-भाई को तो अंगदान करने लगे हैं। हालांकि कई बार लोग अपने सगे रिश्तेदारों तक को अपना अंग देने से कतराते हैं।