बिहार विधानसभा के चुनाव प्रचार में कोरोना महामारी के मुफ्त टीकाकरण की घोषणा करके बीजेपी ने लोगों के जान-माल से जुड़े अत्यंत संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिकरण तो कर दिया मगर वैक्सीन खरीदने, उसके भंडारण तथा लाने-ले जाने जैसे सबसे अहम मुद्दे पर सरकार की चुप्पी चिंताजनक है।
देश में संक्रमितों की संख्या हर दिन 50 हजार से ज्यादा बढ़ने तथा करीब सवा लाख मौतों के बावजूद महामारी का कहर रुकता नहीं दिख रहा। सिर्फ़ वैक्सीन ही हमारी सवा अरब से अधिक आबादी को महामारी से बचा सकती है।
टीकाकरण की राह में सबसे बड़ी बाधा भारत की गर्म जलवायु है क्योंकि महामारी की ज्यादातर वैक्सीन लगातार शून्य से नीचे तापमान पर ही असरदार रहेंगी। कुछ वैक्सीन तो ऐसी तैयार हो रही हैं जिन्हें शून्य से 60 से 80 डिग्री नीचे तापमान पर रखना ज़रूरी होगा।
अमेरिका की जोरदार तैयारी
भारत जैसे गर्म जलवायु तथा अनिश्चित बिजली सप्लाई वाले मुल्क़ के लिए यह विकट चुनौती है। वैक्सीन के भंडारण तथा लाने-ले जाने के लिए अनेक ठंडे इलाकों वाले अमेरिका जैसे देशों में भी कोल्ड चेन बनाने की तैयारी युद्धस्तर पर चल रही है। अमेरिका में सीधे व्हाइट हाउस की निगरानी में फेडेक्स जैसी लॉजिस्टिक्स कंपनियों को लाखों डॉलर निवेश करके शून्य से 60 से 80 डिग्री नीचे की कोल्ड चेन सुविधा तैयार करने को कहा गया है। इसमें वहां की महामारी नियंत्रण एजेंसी को वित्तीय और अन्य सहायता मुहैया कराने की छूट दी गई है।
इसी तरह तरल वैक्सीन भरने के लिए कांच की शीशियां, सीरिंज और अन्य उपकरणों को करोड़ों की संख्या में बनाने के लिए अतिरिक्त उत्पादन क्षमता तैयार करने में भी संबंधित कंपनियों की मदद की जा रही है।
भारत में अभी तक ऐसी किसी तैयारी का रूझान केंद्र सरकार ने नहीं जताया है। इसके लिए अलग से समुचित राशि के प्रावधान की भी पीएम केयर्स अथवा किसी अन्य सरकारी कोष से कोई घोषणा सरकार ने नहीं की है।
अनौपचारिक स्रोतों के अनुसार, टीकाकरण कार्यक्रम को सफल बनाने पर करीब 600 अरब रुपये का ख़र्च आएगा। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को आश्वस्त करेंगे कि उनकी घाटाग्रस्त सरकार इतनी बड़ी रकम का प्रबंध कहां से करेगी?
पुरानी व्यवस्था से कैसे चलेगा काम?
भारत सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, देश में फिलहाल सालाना करीब तीन करोड़ टीकों के भंडारण एवं लाने-ले जाने की ही व्यवस्था है। यह व्यवस्था सर्वजन टीकाकरण कार्यक्रम के तहत करीब छह करोड़ बच्चों एवं गर्भवती माताओं को लगने वाले टीकों के लिए पहले से चली आ रही है। इसके अंतर्गत वैक्सीन भंडारण के 29,000 केंद्र, 89,000 डीप फ्रीजर एवं अन्य उपकरण, 736 जिला वैक्सीन भंडार तथा वैक्सीन के थोक भंडारण के लिए 258 फ्रीजर अथवा एसी लगे ठंडे कमरों का बुनियादी ढांचा पहले से तैयार है।
इसके जरिए टीबी, मैनिंजाइटिस, न्यूमोनिया, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस, आदि गंभीर बीमारियों एवं संक्रमणों से बचाने वाले टीके बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को लगाए जाते हैं।
बर्फखानों को लेकर सवाल
जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुसार, आरंभिक दौर में ही जब 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य है तो वैक्सीन की भंडारण सुविधा अपर्याप्त है। वैक्सीन लाने-ले जाने के लिए रेफ्रिजरेटेड वाहनों का बेड़ा है भी तो, मगर उसे भी इस चुनौती के लिए कई गुना बढ़ाना होगा। इसके अलावा दूरदराज तक वैक्सीन ले जाने के लिए इंसुलेटेड डिब्बे भी आयात किए जा सकते हैं मगर उनमें जीरो से नीचे तापमान बरकरार रखने के लिए अत्यधिक मात्रा में बर्फ की ज़रूरत पड़ेगी। इतनी सारी बर्फ के उत्पादन के लिए क्या नए बर्फखाने बनाए जा रहे हैं?
कोरोना महामारी का उन्मूलन संबंधी टीकाकरण कार्यक्रम दरअसल नियमित टीकाकरण व्यवस्था से कम से बीस गुना ज्यादा व्यापक और चुनौतीपूर्ण है।
पुख़्ता व्यवस्था की ज़रूरत
इसके तहत डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ़, अस्पताल के स्टाफ़, पुलिसवालों, सुरक्षा बलों, नगर पालिका कर्मियों, सफाई कर्मियों एवं सार्वजनिक कार्य से जुड़े अन्य कर्मियों सहित वरिष्ठ नागरिकों को पहले दौर में टीके लगाए जाने हैं। इसके लिए भी उनका सूचीकरण, महामारी काल में उनकी सुरक्षित आवाजाही तथा टीकाकरण केंद्रों को संक्रमण मुक्त रखने के लिए बड़े पैमाने पर व्यवस्था ज़रूरी होगी।
इसके अलावा टीकाकरण करने वाले स्टाफ़ के लिए करोड़ों की संख्या में पीपीई किट, दस्तानों, मास्क एवं फेसशील्ड आदि खरीदने, जमा करने तथा उन्हें टीकाकरण केंद्रों पर पहुंचाने की व्यवस्था भी बनानी होगी। इसके लिए अलग से वाहनों, व्यक्तियों तथा भंडारण की व्यवस्था करनी होगी। इस सबसे अधिक ज़रूरी इस व्यवस्था के संचालन में भ्रष्टाचार से बचने की निगरानी प्रणाली को अमल में लाना होगा।
इससे साफ है कि महामारी से निपटना सिर्फ जुमलेबाजी के बूते संभव नहीं है। इसके लिए ठोस बुनियादी ढांचा बनाने तथा उसकी पुख्ता निगरानी एवं युद्धस्तर पर टीकाकरण प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
आसान नहीं है टीकाकरण
टीकाकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत भी पहले केंद्रीय स्तर पर प्रमुख प्रशिक्षक तैयार करने होंगे। फिर प्रमुख प्रशिक्षक राज्यस्तरीय टीमों को डिजिटल माध्यमों से प्रशिक्षित करेंगे। राज्यस्तरीय टीम आगे जिला स्तरीय टीमों को तैयार करेंगी और फिर वह टीम आगे ब्लॉक, पंचायत तथा ग्राम सभा के स्तर पर टीम तैयार करेंगी। इसके लिए बहुत बड़ी तैयारी ज़रूरी है जिसमें पांच से छह महीने लगना और बड़ी राशि खर्च होना लाजिमी है।
ताज्जुब यह है कि मोदी ने लोगों को वैक्सीन से इलाज के सुनहरे ख्वाब तो दिखाए मगर टीकाकरण के लिए वैक्सीन खरीद और फिर उसे लगाने के बुनियादी ढांचे की तैयारी का कोई विवरण देश को नहीं दिया।
कोरे वादे क्यों?
प्रधानमंत्री की तर्ज पर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी जनता से मुफ्त टीकाकरण का वायदा शुरू कर दिया मगर उसकी तैयारियों का कोई विवरण देने से वे भी बच रहे हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बिहार के मतदाताओं को मुफ्त टीकाकरण का झुनझुना थमाने के तुरंत बाद एनडीए की सहयोगी अन्नाद्रमुक के मुख्यमंत्री पलानिसामी ने तमिलनाडु में भी मुफ्त टीकाकरण की घोषणा कर दी।
उनकी देखादेखी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी मुफ्त टीकाकरण का पासा फेंक कर उपचुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश की मगर चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। शिवराज ने अगले ही दिन मुफ्त टीकाकरण गरीबों के लिए सीमित करके महामारी जनित राज्य के खाली खजाने की हकीकत भी कबूल कर ली।
टीकाकरण की राह बीजेपी की इन राजनीतिक स्वार्थ भरी घोषणाओं से कहीं अधिक पेचीदा है। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन स्वयं प्रशिक्षित स्वास्थ्य विशेषज्ञ होने के बावजूद अगले साल के मध्य तक करीब 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण का दावा कर रहे हैं जबकि कोई भी वैक्सीन अभी तक कम से कम भारत में तो स्वीकृत नहीं हुई है।
उन्होंने वैक्सीन स्वीकृत होने पर उसका पहला टीका खुद लगवाने का दावा करके जाहिर है कि बेहतरीन मिसाल पेश की है मगर उससे अधिक ज़रूरी टीकाकरण व्यवस्था का बुनियादी ढांचा तैयार करना तथा ज़रूरी मात्रा में वैक्सीन खरीदने संबंधी करार करना है।
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