पिछले अंक से आगे…

कल्पना कीजिए कि सेंट्रल विस्टा परियोजना सिर्फ एक नौकरशाह के हाथ में ना होती जिसे संपूर्ण निर्णय लेने का असीमित अधिकार होता, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से नागरिकों से यह पूछा जाता कि हम इसका कैसा रूप चाहते हैं? राजतंत्र में साम्राज्य का केंद्र शाही ठाठ और दरबार होता है। जबकि लोकतंत्र का केंद्र लोक ही होना चाहिये। राष्ट्रीय प्रांगण के सबसे महत्वपूर्ण और ज्यादा से ज्यादा हिस्सों में बगीचे, सांस्कृतिक गतिविधियों की संस्थाएं व मेलों के लिए खुली जगह होनी चाहिए यानी कि ‘जनता का इलाक़ा’ जहां आम लोग बेफिक्र घूम सकें और जम्हूरियत के वाशिंदे होने पर गर्व महसूस कर सकें।