‘अब तक सारी विद्वता ब्राह्मणों के पास रही है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आज तक एक भी ब्राह्मण वोल्टेयर जैसी भूमिका निभाने के लिए सामने नहीं आया, न भविष्य में ऐसा हो पाने की संभावना है। वोल्टेयर ख़ुद कैथलिक चर्च की परंपरा में पले-बढ़े लेकिन उनमें बौद्धिक ईमानदारी थी और वह चर्च के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ खड़े हो गए। ये ब्राह्मणों की विद्वता और मेधा पर बहुत बड़ा सवाल है कि उन्होंने एक भी वोल्टेयर क्यों पैदा नहीं किया। यह ध्रुव सत्य है कि प्रत्येक ब्राह्मण, ब्राह्मणवाद का मुकुट धारण किए ही रहेगा, चाहे वह रूढ़िवादी हो या नहीं, वह पुरोहित हो या गृहस्थ विद्वान हो या बुद्धिहीन। ब्राह्मण की बौद्धिकता इसी दायरे में सीमित है और उसे यह चिंता बनी रहती है कि उसका स्वार्थ सिद्ध होता रहे।’केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित ‘अछूत कौन थे और वे अछूत कैसे बने’ की प्रस्तावना में डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा लिखित यह अंश अब भी शब्दशः सही नज़र आ रहा है जब देश भर में दलितों, पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण को निष्प्रभावी करने की अनेक घटनाएँ आ रही हैं और ब्राह्मण विद्वानों ने वंचितों को मिलने वाले आरक्षण को आर्थिक आधार पर करने का अभियान चला रखा है।

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